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आग्रह का खूटा
बुद्धि का लंगर जब आग्रह के खूटे से बंधा रहता है, तो विचारों की नौका को चाहे जितनी डांड लगाइये, वह मंजिल की ओर एक चरण भी नहीं बढ़ा सकेगी।
एक लोक कथा है। कुछ व्यक्ति यात्रा के लिए निकले। मार्ग में नदी पार करके उधर जाना था। वे सायंकाल एक नौका में सवार हुए और बारी-बारी से नाव की डाँड हिलाते हाथ-पैर चलाते रहे। रात भर नाव चलाने के बाद प्रातःकाल की लालिमा जब पूरब में चमकी तो नाव को उसी किनारे पर खड़ी देख सब के सब विस्मयविमुग्ध हुए देखते रह गए।
किनारे पर खड़े मांझी को पुकारते हुए एक ने कहा"जरा देखो तो, नाव में कुछ खराबी हो गई है, रात भर चलाने के बाद भी अभी उसी किनारे पर खड़ी है।"
मांझी ने व्यंग्यपूर्ण मुस्कान के साथ कहा-"महाशय ! नाव तो लंगर से बंधी है, अब तक तो यह खूटे से खुली ही नहीं, चलेगी क्या खाक ?'
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