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'बिन्दु में सिन्धु' अपने शीर्षक को सार्थक करता हुआ सुपठनीय सामग्री प्रस्तुत करता है । प्रत्येक रूपक मस्तिष्क को चिन्तन सामग्री देने के साथ-साथ भावी संभावनाओं की ओर संकेत करता है । मुनि जी ने इसके पूर्व भी इस दिशा में अनेक स्तुत्य प्रयास किये हैं और जैन साहित्य के सुयोग्य पाठकों के मध्य उनकी रचनाओं का व्यापक स्वागत हुआ है । विचार-कणों के सुन्दर संकलन की दिशा में यह उनका अगला पड़ाव है । प्रांजल भाषा एवं प्रभावपूर्ण शैली का आधार लेकर लेखक ने विचार-सरिता के अवगाहन का प्रशंसनीय कार्य किया है । शैली में प्रसाद गुण की मनोरम छटा देते हुए मुनि जी ने जिस लगन एवं धैर्य का परिचय दिया है, उसके लिये वे सचमुच बधाई के पात्र हैं ।
२ अप्रैल १९७५
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-डा० रामप्रसाद त्रिवेदी एम० ए० पी एच० डी० [ अध्यक्ष, हिन्दी विभाग बिड़ला महाविद्यालय कल्याण (महाराष्ट्र ) ]
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