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महात्मा ने कहा- "तुम्हारे मकान के पास ही एक घास-फूस की झोंपड़ी है न ? उसमें एक सास और बहू रहती है, कल उसको खाने जितना सीधा दे आना, बस तुम्हारे पास अटूट सम्पत्ति हो जायगी।"
सूर्योदय होते ही वह 'सोधा' लेकर झोंपड़ी पर पहुँचा। उसने देखा-सास तो ध्यान साधना में तल्लीन है और बहू झोंपड़ी की सफाई कर रही है।
सेठ ने उससे विनम्रतापूर्वक कहा-“मैं आपके लिए आटा, दाल, घी, चीनी इत्यादि लाया हूँ, मेहरबानी करके इसे स्वीकार कोजिए।
बहू ने नम्रतापूर्वक कहा-“सेठजी ! आज के खाने भर का सामान हमारे पास पड़ा हुआ है इसलिए हमें इस सामान की आवश्यकता नहीं है।"
सेठ ने कहा- 'आप इसे कल के लिए स्वीकार कर लीजिए।"
बहू ने कहा- "हम कल के लिए संग्रह करके नहीं रखतीं। हमें प्रतिदिन खाने को मिल ही जाता है।"
सेठ उसकी बात को सुनकर चकित हो गया। एक ये लोग हैं जो अपने लिए कल की भी चिन्ता नहीं करते और एक मैं हूँ, जो सात पीढ़ी की चिन्ता कर रहा हूँ। उसे सच्ची दृष्टि मिल गई कि सन्तोष ही सच्चा धन है। *
बिन्दु में सिन्धु
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