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________________ पुण्यपुरुष २६७ जो पहुँचा। मृग तो सघन झुरुमुटों में छिप गया किन्तु राजा को वहाँ एक मुनि के दर्शन हुए। उन्हें देखकर उसे फिर शैतानी सूझी। उसने मुनि को कान पकड़कर उठाया और नदी के जल में डबो दिया । कुछ क्षण बाद जब उसे कुछ दया आई तब मुनि को उसने जल से बाहर निकाल दिया और मूच्छित अवस्था में ही उन्हें छोड़कर वह घर लौट आया। घर आकर जब इस घटना का वर्णन उसने अपनी रानी से किया तब रानी ने बड़े दुःख से कहा-"प्राणनाथ ! आपने यह बड़ा ही अनुचित कार्य किया है । किसी सामान्य जीव को भी कष्ट नहीं देना चाहिए, किन्तु आपने तो पूज्य मुनिवर को पीड़ा पहुंचाई है। आपको इस पाप का फल न जाने कब तक भोगना पड़ेगा ?" "अब ऐसा नहीं करूंगा," कहकर राजा उस घटना को भूल गये। एक दिन वह राजा अपने महल के झरोखे में बैठा था कि उसी समय गोचरी के निमित्त से एक मुनि उधर से आ निकले । उन्हें देखते ही राजा पहले की सब बातें भूल गया। क्रोधित होकर उसने अपने सेवकों को आज्ञा दी"इस भिक्षक ने सारी नगरी को भ्रष्ट कर डाला है। इसे इसी समय नगर से बाहर निकाल दो।" ___ अज्ञानी राजा के सेवक भी अज्ञानी ही थे। उन्होंने धक्के दे-देकर मुनि को बाहर निकालना आरम्भ किया । किन्तु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003183
Book TitlePunya Purush
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1980
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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