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________________ २६६ पुण्यपुरुष ___"जहाँ तक तुम्हारे पूर्वजन्म के वृत्तान्त का प्रश्न है उसका वर्णन मैं संक्षेप में करता हूँ, सुनो इस भरतक्षेत्र में हिरण्यपुर नामक एक नगरी है। कुछ काल पूर्व वहाँ श्रीकान्त नामक एक राजा राज्य करता था। उसकी रानी का नाम श्रीमती था। वह बड़ी ही गुणवती तथा शीलवती थी। जैनधर्म पर उसे अपार श्रद्धा थी। राजा श्रीकान्त को शिकार करने का दुर्व्यसन था। उसकी रानी उसे बहुत समझाती थी कि वह इस प्रकार जीवहिंसा न किया करे, किन्तु राजा के हृदय पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता। जिस प्रकार पुष्करावर्त मेघ के बरसने पर भी मगसलिया पाषाण भीगता नहीं उसी प्रकार पत्नी के किसी उपदेश का कोई प्रभाव उस अज्ञानी राजा पर नहीं पड़ता था। ___ एक बार वह राजा अपने सात सौ उद्दण्ड कर्मचारियों को लेकर शिकार करने गया। वन में उसे एक मुनि के दर्शन हुए। किन्तु वह मूर्ख बोला-देखो, यह कोई कोढ़ी जा रहा है । राजा द्वारा ऐसे कहने पर उसके कर्मचारियों ने उन मुनिवर को नाना प्रकार के कटु-वचन कहे तथा कष्ट दिये। किन्तु मुनिवर तो शान्त ही रहे। अन्त में राजा और उसके साथी लौट गये। एक दिन राजा अकेला ही शिकार खेलने गया। किसी मृग का पीछा करते-करते वह एक नदी के किनारे तक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003183
Book TitlePunya Purush
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1980
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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