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२५४ पुण्यपुरुष लियों का नर्तन होगा और वे बिजलियाँ आपके इस अहंकारी शीष पर गिरकर इसे चूर्ण-चूर्ण कर देंगी।"
अजितसेन हँस पड़ा और बोला- "अब तुम जा सकते हो चतुर्मुख ! बातों का तो कहीं अन्त होता नहीं। अतः अब युद्धभूमि में ही शेष बातें होंगी-तलवारों से।" ___ चतम ख चम्पानगरी से लौट आया। अपने मन में वह निराश इसलिए नहीं था कि वह अजितसेन के अभिमानी और क्रूर स्वभाव को जानता था। उसे केवल चिन्ता थी-युद्ध होगा, और दुष्ट अजितसेन स्वयं तो नष्ट होगा ही, अपने साथ अन्य हजारों निरपराध प्राणियों का भी संहार करा देगा।
महाराज श्रीपाल तथा मंत्री मतिसार को उसने अजितसेन की राजसभा में जो वार्तालाप हुआ था वह अक्षरश: कह सुनाया। सुनकर राजा और मंत्री दोनों ही कुछ क्षण मौन रहे । अन्त में मंत्री ने ही कहा
"महाराज ! अब तो कोई उपाय नहीं है। युद्ध अनिवार्य है।" ___“यही सोच रहा हूँ । सैन्य सज्जित हो। प्रयाण आरम्भ हो । किन्तु ! मंत्रिवर, यथासम्भव रक्तपात कम से कम हो तथा काकाजी को जीवित ही बंधन में डालकर मेरे समक्ष उपस्थित किया जाय । मैं चाहता हूं कि उनका हृदय परिवर्तन हो । प्रयत्न तो करना ही चाहिए।"
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