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कोल्लागपुर की राजकुमारी जयसुन्दरी अत्यन्त रूपवती, गुणवती तथा अस्त्र-शस्त्र संचालन में भी निष्णात थी। जिस समय वह विद्याध्ययन कर रही थी, उस समय उसे उसके शिक्षा-गुरु ने 'राधा-वेध' के विषय में बताया था। राजकुमारी को इस अद्भुत विद्या के विषय में विशेष कौतूहल हुआ था। उसने पूछा था___ "गुरुदेव ! यह 'राधावेध' क्या होता है ? इसे किस प्रकार सम्पन्न किया जाता है ?
शिक्षागुरु ने उसे समझाया था
"बेटी ! 'राधावेध' धनुविद्या का ही एक अंग है, और यह बड़ा कठिन कार्य है। इसे तो अर्जुन जैसे कोई-कोई महा धनुर्धर ही सम्पन्न कर सकते हैं। होता यह है कि किसी मण्डप में एक स्तम्भ गाड़ा जाता है। उस स्तम्भ पर आठ चक्र लगाये जाते हैं। उनमें से चार चक्र एक तथा शेष चार चक्र दूसरी दिशा में निरन्तर घूमते रहते हैं । इन चक्रों से भी ऊपर एक पुतली बैठा दी जाती है ।
"अब उस स्तम्भ के नीचे तेल से भरा हुआ एक बड़ा
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