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वे अत्यधिक लोकप्रिय भी होते चले आ रहे हैं। कितने ही उपन्यास तो इतने निम्नस्तरीय हैं कि वे मानवता के लिए कलंक रूप है । उनमें सेक्स भावनाएं इतने विकृत रूप से उभारी गई हैं कि पढ़ते-पढ़ते सिर लज्जा से नत हो जाता है । चोरी, डकैती बलात्कार, अनुशासनहीनता आदि तत्वों को प्रोत्साहन दिया गया है जिससे आज देशनिवासियों का चारित्रिक पतन हुआ है । साहित्यकारों का दायित्व है कि वे ऐसे साहित्य का निर्माण करें जो देश निवासियों के लिए वरदान रूप में हो ।
प्रस्तुत उपन्यास चारित्रिक उत्कर्ष को लिये हुए है । सर्वत्र चारित्रक उत्कर्ष को उभारा गया है जिससे मानव पवित्र चरित्र से अपने जीवन का निर्माण करे । "शूली और सिंहासन" के पश्चात् यह दूसरा उपन्यास अपने प्रबुद्ध पाठकों को दे रहा हूँ । परम श्रद्धेय सद्गुरुवर्य उपाध्याय श्री पुष्करमुनि जी म० सा० की प्रबल प्रेरणा, आशीर्वाद से मैं साहित्यिक प्रगति कर रहा हूँ । उस असीम उपकार को ससीम शब्दों में व्यक्त करना कठिन है । साथ ही रमेशमुनि जी, राजेन्द्रमुनि जी, दिनेशमुनि आदि सन्त मण्डल की सेवा भी विस्मृत नहीं की जा सकती । उपन्यास की दृष्टि से स्नेहसौजन्यमूर्ति श्री ज्ञान जी भारिल्ल ने पांडुलिपि को निहारकर आवश्यक परिमार्जन किया है, इसलिए उनके स्नेह पूर्ण सद्व्यवहार को भी विस्मृत नहीं हो सकता । मुद्रण कला की दृष्टि से श्रीचन्द्र जी सुराना ने सहयोग दिया है वह भी सदा स्मरणीय रहेगा । मुझे आशा है प्रस्तुत उपन्यास जनप्रिय होगा और इस विधा में नये उपन्यास भी प्रदान किये जायेंगे ।
- बेवेन्द्र मुनि
आषाढ पूर्णिमा उदयपुर (राजस्थान)
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