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२२ | सोना और सुगन्ध आलोचना के सिवाय कोई बात ही नहीं। कल प्रधानमन्त्री की निन्दा कर रहे थे और आज उसके गुण बघार रहे हो।
दन्तिल-कल मैंने क्या कहा था? तू व्यर्थ ही मेरे पर दोषारोषण कर रही है। प्रधानमन्त्री के विरुद्ध मैंने एक भी शब्द कभी नहीं कहा। मैं स्वप्न में भी प्रधानमन्त्री के विरुद्ध कुछ भी नहीं कह सकता । तू ही सोच, जिसने अपना सम्पूर्ण जीवन राजा के हित के लिए और प्रजा के हित के लिए उत्सर्ग किया हो, उसकी बुराई मैं कैसे कर सकता हूँ? ___ महतरानी ने कल की बात की स्मृति दिलाते हुए कहा कि आपने अमुक-अमुक बातें कही थीं।
दन्तिल ने कहा-तुझे पता नहीं कल मैंने शराब अधिक पी रखी थी। उस नशे में यदि मैं कुछ भी बक गया हूँ तो मुझे कुछ भी पता नहीं ।
राजा आज भी हरिजन दम्पत्ति की बात कान लगा कर गवाक्ष में खड़े रहकर सुन रहा था। उसे अपने कृतकार्य पर ग्लानि हुई। अरे मैंने इसके कहने से कितना महान अनर्थ कर डाला। जिस प्रधानमन्त्री ने जीवन भर मेरी व प्रजा की सेवा की, उसे मैंने यह पुरस्कार दिया है।
राजा शीघ्र ही कारागृह में पहुँचा और प्रधानमन्त्री को बन्धनमुक्त कर दिया। क्षमा-याचना कर स-सम्मान उसे घर पहुँचाया।
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