________________
१४८ | सोना और सुगन्ध
- सुनो खजांची बात मम, करना नहीं विचार ।
आवे जब ही विप्र यह, लीजो नाक उतार ॥ खजांची पुरोहित को लेकर तहखाने में पहुँचा और पुरोहित की नाक काट ली। पुरोहित नाक पर पट्टी बाँध अपने घर पहुंचा।
गरीब ब्राह्मण दूसरे दिन मुँह पर पट्टी बाँध दरबार में पहुंचा और नित्य की तरह जाते ही कहा__ "धर्म की जय, पाप का क्षय; भले का भला, बुरे का बुरा ।”
राजा ने ब्राह्मण को आश्चर्य से देखा और पूछा"क्या तुम मेरा लिफाफा लेकर खजांची के पास नहीं
पहँचे ?"
ब्राह्मण ने अपने भाग्य का रोना रोया
"प्रजापालक ! आपने तो मुझे इनाम दिया, पर मेरे भाग्य में नहीं था, सो मुझे नहीं मिला।" . . राजा को और भी आश्चर्य हुआ। ब्राह्मण को अपने पास बुलाया और पूछा ----
"सच-सच बताओ क्या बात है ?"
ब्राह्मण ने आप-बीती सुनाई । राजा ने सुना तो आगबबूला हो गया। राजा ने सेवक भेजकर पुरोहित को बुलवाया और पूरे दरबार में उसकी करतूत का कच्चा
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org