________________
बुराई की स्मृति भी घातक | १३३ की आज्ञा माँगी । बुढ़िया ने आग्रह किया-'बिना खाना खिलाये न जाने दूंगी।" चारों ने समझाया___"माँ ! तेरा ममता-भरा सत्कार हम भला कभी भूल पायेंगे ? वह छाछ क्या थी, अमृत था । अब हमें आज्ञा दो । दूर का सफर है, फिर धूप होगी, ठण्ड-ठण्ड में सफर करना अच्छा रहेगा।"
बुढ़िया मान गई। चारों अपने गन्तव्य की ओर प्रस्थान कर गए।
दिन निकला तो बुढ़िया अपने दैनिक कार्यों में लगी। रात की बासी छाछ निकालकर, उसे दही बिलोना था। बुढ़िया ने ज्योंही रात की छाछ निकाली तो उसकी आँखें फटी-की-फटी रह गईं। छाछ में काला साँप मरा पड़ा था। बुढ़िया का सिर घूम गया, आँखें पथरा गईं-'अब क्या हो ? अनजाने ही मेरे हाथ से यह पाप हो गया। चारों ही जहरीली छाछ पी गए, अब न जाने कहाँ पहुँचे होंगे।'
दिनभर बुढ़िया बहुत दुःखी रही। अब उसके हाथ में केवल पछतावा ही रह गया था। उन्हें विषमुक्त करने का कोई उपाय उनके पास नहीं था।
एक वर्ष बीता वही चारों व्यक्ति धनोपार्जन के लिए
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org