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________________ १५ दुर्जेय शत्रु को जीता खून से लथपथ भाई की तड़पती लाश को देखकर क्षत्रिय कुलपुत्र क्षणभर के लिए धक्-सा रह गया और क्षणभर में ही वह तड़पता शरीर भी शान्त हो गया। अभी तक कुलपुत्र सोच भी नहीं पाया कि क्या हो गया; और फिर एक चीख निकली-माँ sss ! मेरा भैया नहीं रहा । अरे भैया तू मुझे छोड़कर""कुछ कहे बिना ही कहाँ चला गया...?" क्षत्राणी माँ और क्षत्रिय भाई-दोनों के रुदन से पत्थर दिल भी पिघल रहे थे । आस-पास खड़े लोग शोकसागर में डूबे हुए थे । कोई कह रहा था "च् च च ! किसी दुष्ट ने सोते हुए पर खड्ग का वार किया है । कायर कहीं का?" और एक कह रहा था "अगर वीर होता तो जगाकर मुकाबला करता सोते हुए को मारना और दीवार पर वार करना-दोनों ही बराबर हैं।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003182
Book TitleSona aur Sugandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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