SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 107
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६८ | सोना और सुगन्ध अब आगे बढ़ना उनके बस का नहीं । दरअसल सहारा पाकर व्यक्ति और भी ज्यादा बेसहारा बन जाता है। मुनि को एक भवन की शीतल छाया का सहारा मिल गया था। भवन के नीचे खड़े मुनि अरणिक धूप से त्राण पा रहे थे। इस सुखद छाया ने मानो उनके पैर में बेड़ी डाल दी थी। भवन के ऊपर एक सुन्दरी बाला खड़ी हुई थी। उसका पति बहुत दिनों से परदेश गया हुआ था। वह कामपीड़िता नारी प्यासी आँखों से मुनि का सौन्दर्य देख रही थी। उसने सोचा-'साधु को ऊपर आते कोई देख भी लेगा तो शंका नहीं करेगा, क्योंकि साधु-सेवा तो गृहस्थ का धर्म है।' कामपीड़ित बाला ने दासी को भेजकर मुनि को ऊपर बुलवा लिया और सम्मान से बैठाकर पंखे से हवा करने लगी। ठण्डी हवा के स्पर्श से मुनि के प्राण लौट आये। फिर उस चतुरा ने उन्हें सुस्वादु भोजन कराया और मुनि को एक कमरे में आराम करने का आग्रह किया। स्त्री सृष्टि का सबसे बड़ा जादू है। मेनका ने विश्वामित्र को भी नहीं छोड़ा। बड़े-बड़े तपस्वी और वीर इसके जादू से नहीं बचे । अरणिक मुनि ने देखा-इसकी चितवन में मौन निमन्त्रण है, एक बुलावा है और इस सबसे ऊपर एक आग्रह भी है। दोपहरी बिताने के बाद मुनि भारी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003182
Book TitleSona aur Sugandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy