SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 105
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६६ | सोना और सुगन्ध राजा ने पुत्र से कहा "पुत्र ! तू तो पितृ-ऋण से भी उऋण हो गया। तूने मुझे भी धर्म में स्थित कर दिया। तेरे साथ मैं भी दीक्षा ग्रहण करके जीवन सफल बनाऊँगा।" ___ तभी महारानी अरणिक की माँ भी आ पहुँची । सारी परिस्थिति का अवलोकन कर रानी ने कहा____ "जिस महासुख को लेने पिता-पुत्र आगे बढ़ रहे हैं, तो क्या मुझ अकेली को इस दलदल में फंसा छोड़ जाएँगे? मैं भी आप दोनों के साथ दीक्षा ग्रहण करूंगी।" एक के बाद एक तीनों दीक्षित हो गए । गुरुदेव ने तीनों को दीक्षा दी और मुनि धर्म के आचार-विचार बताकर श्रमण संघ में सम्मिलित कर लिया। XX अरणिक के पिता मुनि बनकर भी पुत्र-मोह नहीं त्याग सके । पिता-मुनि पुत्र-मुनि को कुछ नहीं करने देते। पुत्रमुनि केवल स्वाध्याय में ही लगा रहता। पिता-मुनि स्वयं गोचरी को जाते और पुत्रमुनि को भोजन देते। जलपात्र में जल भरकर भी ले आते । पितामुनि के इस आचरण पर साथी मुनि उन्हें समझाते "मुनिवर ! आपके इस सहयोग से आपका पुत्र पंगु और अपाहिज हो जायगा। फिर वह कुछ भी नहीं कर सकेगा। मुनि जीवन के सामान्य कर्म भी जब आपका पुत्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003182
Book TitleSona aur Sugandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy