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बोला; 'देवी ! आपका चित्र अत्यन्त भव्य और जीवन-पर्यन्त स्मृति-पटल पर नाचने जैसा बना है।' - 'मैं धन्य हो गई. किन्तु मैं आपको आज ऐसे ही नहीं जाने दूंगी। आपको मेरा सत्कार स्वीकार करना ही होगा।'
सुशर्मा मौन रहा।
देवी चन्द्रसेना आर्य सुशर्मा के पास एक आसन पर बैठ गई। उसने विनोदा को संकेत दिया और तत्काल तीन दासियां वहां उपस्थित हो गई।
देवी चन्द्रसेना ने एक फूलमाला कलाकार को पहना दी। . दुग्धपान के पश्चात् सुशर्मा ने कहा-'देवी ! मैं अभी आपको चित्र अर्पित करने के लिए आया हूं. 'किन्तु चित्र को देखते समय यहां दूसरा कोई ।'
'ओह !' कहकर चन्द्रसेना ने वहां खड़ी विनोदा से कहा-'तू बाहर जा, और इस बात का ध्यान रखना कि कोई अन्दर न आए।' 'जी !' कहकर विनोदा चली गई।
आर्य सुशर्मा ने चित्र पर लपेटे हुए वस्त्र खंड को निकाला और चित्र को किस कोने से देखा जाए यह सोचते हुए चारों ओर देखा। . चन्द्रसेना के तन में यह प्रश्न उभर रहा था कि उसका निरावरण चित्र कितना भव्य होगा? सौन्दर्य कितना मनमोहक होगा? इसी विचार में डूबी हुई वह बोली-'आप चारों ओर क्या देख रहे हैं ?'
'चित्र बड़ा है । उसे कहां रखू, यही सोच रहा हूं।' ___तो आप मेरे शयनखंड में चलें।' कहकर चन्द्र सेना उठी और आर्य सुशर्मा उसके पीछे चित्र को साथ ले चल पड़ा। ___ शयनखण्ड में जाने के पश्चात् सुशर्मा ने कहा-'देवी ! मैं आपके चित्र को आपके ही पलंग पर निरावृत करता हूं."फिर आप इस पर कांच मंढा लेना।'
'क्या पलंग पर इसे ठीक प्रकार से देखा जा सकेगा?' देवी ने पूछा।
'नहीं, फिर भी कुछ आभास तो होगा ही। यदि कोई फेम हो तो अच्छा है। उसे दीवार के पास रखकर देखने से पूरा आनन्द देगा।' - तत्काल चन्द्रसेना ने विनोदा को पुकारा । वह दौड़ी-दौड़ी आयी । चन्द्र सेना ने कहा-'विनोदा ! कोई फेम...'
बीच में ही सुशर्मा बोल पड़ा-'कोई आवश्यकता नहीं है । मैं चित्र कोपकड़कर खड़ा रहूंगा । आप दूर से उस चित्र का निरीक्षण करना ।आप उस सामनेवाली दीवार के पास खड़ी रहें. "मैं इस दीवार के पास खड़ा रहूंगा क्योंकि यदि इसके माप का फेम नहीं मिलेगा तो काम पूरा नहीं होगा।'
ऐसा ही हुआ। विनोदा तत्काल कक्ष से बाहर चली गई। चन्द्रसेना सामने की दीवार के
महाबल मलयासुन्दरी २६
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