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________________ ५. चित्र पूरा हुआ आशा के रंग की कल्पना किसी के लिए सहज नहीं है। आशा प्रतिपल अपना रंग बदलती है । जैसे मन की तरंगें क्षण-क्षण में बदलती हैं, वैसे ही आशा की तरंगें भी चंचल हैं। जब मनुष्य का मन आशा के अकल्पित रंगों में आत्मविभोर हो जाता है, तब उसके स्वप्न मात्र लुभावने बनते हों, यह बात नहीं है, किन्तु उसकी नींद भी उचट जाती है और त्रियामा रात्रि भी शतयामा बन जाती है। निरावरण चित्र की आशा ने चन्द्र सेना के मन में आर्य सुशर्मा के स्वस्थ देह के साथ संपर्क की कल्पना उभार दी थी। इतने में ही सुशर्मा सारी व्यवस्था कर देवी के पास आकर बोला---'देवी ! अब आप अन्दर के कक्ष में पधारें।' चन्द्रसेना तत्काल उठी । अन्दर के कक्ष में निरावरण होना पड़ेगा, यह कल्पना जितनी मधुर थी, उतनी ही वह लज्जा के भार से भारी थी परन्तु उसकी इच्छा के अनुसार सब कुछ घटित हो रहा है यह सोचकर वह सुशर्मा के पीछे-पीछे चल पड़ी। सुशर्मा ने खंड में प्रवेश किया। देवी और विनोदा दोनों साथ थीं। सुशर्मा ने कहा---'देवी ! आपकी निरावरण चित्राकृति तीन प्रकार से हो सकती है। आप कौन-सा प्रकार पसन्द करेंगी?' 'आप मुझे समझाएं। 'एक प्रकार तो यह है कि निरावरण होकर स्वाभाविक रूप से खड़े रहना, दूसरा प्रकार है कि किसी भी नृत्यमुद्रा में खड़े रहना और तीसरा प्रकार है कि शय्या में निद्रित अवस्था या अर्धनिद्रित अवस्था में सोते रहना । इन तीनों में से आप जो पसन्द करेंगी, उसी में आपका चित्र...' सुशर्मा ने अत्यन्त सहज स्वरों में कहा। चन्द्रसेना विचारामग्न हो गई "उसने सोचा, भव्य और सुन्दर पलंग पर अर्धनिद्रित अवस्था में पड़े रहना अति उत्तम होगा। किन्तु यहां तो कोई भव्य २४ महाबल मलयासुन्दरी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003181
Book TitleMahabal Malayasundari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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