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__ यह देखकर महाराजा सुरपाल और वीरधवल अपने नामांकित हाथियों पर आरूढ़ होकर आगे आए। उन्हें कुछ भी विचित्रता नहीं लगी। . महाबल ने मंत्रित कर दो बाण छोड़े-एक बाण पिता और दूसरा श्वसुर पर । दोनों बाण दोनों की तीन-तीन बार प्रदक्षिणा कर उनकी गोद में एक-एक पत्र रख महाबल के पास लौट आए।
महाबल ने इन पत्रों द्वारा अपना परिचय दिया था। पत्र पढ़ते ही वीरधवल ने युद्ध बंद करने की घोषणा की। युद्ध बंद हो गया। कोई क्षति नहीं हुई। महाबल हाथी से नीचे उतरा और आगे बढ़कर दोनों के चरणों में गिर पड़ा। पिता और श्वसुर---दोनों हर्ष से उछल पड़े।
बाजे-गाजे के साथ पिता और श्वसुर राजमहल में गए। वहां पहुंचते ही मलया ने दोनों की चरणरज मस्तक पर चढ़ायी।
दोनों ने मलया को आशीर्वाद दिया ।
तत्पश्चात् मलया और महाबल ने अथ से इति तक की सारी घटनाएं सुनाईं। सुनकर सब रोमांचित हो उठे।
राजा सिद्धराज महाराजा सुरपाल के युवराज महाबल हैं और महारानी मलयासुन्दरी राजा वीरधवल की सुपुत्री हैं----यह बात सारे नगर में फैल गई। नगरवासी उत्सव मनाने की तैयारी में लग गए।
दूसरे दिन ।
राजभवन खचाखच भरा था। बलसार को वहां लाया गया। उसकी बातें सुन महाराजा सिद्धराज ने उसके काले कृत्यों को एक-एक कर जनता के समक्ष रखा । सारी जनता उसे धिक्कारने लगी। - महाबल ने कहा----'बलसार! तेरा अपराध अक्षम्य है। तूने एक अबला को फंसाया, उसको बेचा और उसके पुत्र को छीन लिया। इसका दंड मृत्यु है। तू क्या कहना चाहता है ?'
बलसार रो पड़ा । उसने दया की भीख मांगी। .. महाबल और मलया का हृदय पिघल गया । मलया बोली- स्वामीनाथ ! क्षमा परम धर्म है, उत्तम धर्म है।'
महाबल ने बलसार से कहा-'तू क्षमा करने योग्य नहीं है। अभी-अभी कारागृह में भी तूने षड्यन्त्र रचा था''यह तेरी दुष्टता का उत्कृष्ट उदाहरण है. मैं तुझे मुक्त करता हूं। तू अपने आप प्रायश्चित्त की अग्नि में जलेगा।'
दूसरे दिन बलसार और उसकी पत्नी दोनों बालक बलसुन्दर को लेकर राजसभा में आ पहुंचे।
मलयासुन्दरी अपने प्राणप्रिय पुत्र को लेकर चूमने लगी और लंबे समय ३०८ महाबल मलयासुन्दरी
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