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महाबल ने राज्यभार संभालते ही कंदर्पदेव की विधवा रानियों के लिए सुन्दरतम व्यवस्था की। नगर में कंदर्पदेव की मृत्यु के उपलक्ष्य में गरीबों को दान दिया और प्रजा की सुख-शांति के लिए अनेक नीतियां निर्धारित कीं । बसार को यह ज्ञात ही नहीं था कि मलयासुन्दरी इस नगर की पटरानी बन चुकी है।
सार किराने से जहाज भर सागरतिलक नगर के बंदरगाह पर आ पहुंचा था । वह नये राजा की प्रीति संपादित करने के लिए कुछ भेंट ले राजदरबार में
आया ।
बलसार को देखते ही महाबल के पार्श्व में बैठी मलयासुन्दरी चौंकी और उसने मंद स्वर में स्वामी से कहा - 'स्वामी ! जो आ रहा है, यही बलसार है । इसी ने हमारे पुत्र को छीन रखा है।'
बलसार ने महाबल की ओर दृष्टि डाली । मलयासुन्दरी को वहां पास में बैठी देख, उसका हृदय कांप उठा । उसने सोचा- मलयासुन्दरी यहां कैसे आ गई ! नहीं-नहीं- अरे ! यह तो मलया ही है ! वही चेहरा, वही रूप ! वही तेज और वही नयन युगल !
अब क्या करूं ?
वह असमंजस में पड़ गया ।
महाबल बोला- 'सेठजी ! आपने मलयासुन्दरी को पहचान लिया है ।' फिर मलया की ओर देखकर कहा - 'मलया ! जिस महापुरुष के विषय में तू बता रही थी, वह यही है न ?'
मलया ने मस्तक नमाकर स्वीकृति दी ।
महाबल ने तत्काल बलसार को बंदी बनाने का आदेश दिया और उसके काले कारनामे कह सुनाए ।
महाबल ने कहा - 'इस दुष्ट सेठ ने मेरे एकाकी पुत्र को अपने घर में छिपा रखा है। इसकी सारी संपत्ति जब्त कर ली जाए। जब तक दंड की घोषणा न की जाए तब तक इसे कारागृह में रखा जाए ।'
उसी समय राजाज्ञा का पालन हुआ । महाबलाधिकृत चार रक्षकों के साथ आगे आया और बलसार को बंधनग्रस्त कर दिया ।
किन्तु दुष्ट बलसार एक शब्द भी नहीं बोला। मलया को देखकर बलसार को वह तमाचा याद आ गया जो मलया ने उसके गाल पर मारा था । उसके दिल में अकुलाहट होने लगी ।
बलसार को 'कारागृह ' में डाल दिया गया ।
कारागृह में जाते-जाते बलसार मन-ही-मन महाराजा महाबल और मलया के विनाश की योजना गढ़ रहा था ।
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महाबल मलयासुन्दरी ३०५
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