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दी। मैं उस सुरंग में घुसा और पेट के बल आगे खिसकते-खिसकते एक चौड़े स्थान पर आ गया। मणिधर सर्प अपनी मणि वहां रख चला गया। मैं नवकार मंत्र का जाप करता हुआ मणि के पास गया । मैंने देखा वहां कोई गुप्त द्वार है। मैंने शिला को हटाया। मार्ग बन गया। फिर मणिधर की मणि को एक ओर रख मैं सर्प की प्रतीक्षा करने लगा। किन्तु एक प्रहर तक वह नहीं आया तब मैं मणि को लेकर उसी मार्ग से बाहर निकला। शिलाखण्ड को यथावत् कर जब मैं बाहर आया तब रात्रि का अन्तिम प्रहर चल रहा था। मैं कुएं से काफी दूर आ चुका था । मैं उस वृक्ष के पास आ गया, जहां मैंने कपड़ों की पोटली रखी थी। उसे ले नगर में आया और एक पान्थशाला में विश्राम के लिए रह गया। फिर मैं तेरी खोज में निकला और यहां आ गया। ... 'ओह प्रियतम ! मेरे लिए इतने कष्ट ! मैं अभागिनी हूं कि अपने प्रियतम
को भी सुख नहीं दे सकती।' कहती हुई मलया रो पड़ी। ___महाबल बोला-'प्रिये ! अब कष्टों का अन्त आ गया है । अभी हमें यहां से प्रस्थान कर देना है।' .. 'स्वामिन् ! राजा के वचनों पर विश्वास रखना खतरे से खाली नहीं है।' मलया ने कहा।
महाबल तत्काल द्वार के पास गया और द्वार को खोल बाहर निकल गया। मलया भी उसके पीछे-पीछे कक्ष से बाहर आ गई।
मलया सुन्दरी को जीवित देख सभी लोग हर्ष से फूल उठे। राजा कंदर्पदेव ने प्रसन्न होकर कहा-'सिद्धेश्वर ! तुमने असंभव कार्य को संभव कर दिखाया है।'
सिद्धेश्वर ने कहा- 'महाराजश्री ! आपके मंत्री ने एक शंका व्यक्त की थी-आप मलयासुन्दरी से पूछे कि वह किसकी पत्नी है ?'
राजा ने कहा---'तुम जो कहते हो वह सही है।'
महाबल बोला---'फिर आप मुझे मेरी पत्नी सौंप दें और प्रसन्न हृदय से हमें विदाई दें।'
'सिद्धेश्वर ! महाराज ने आपकी शर्त मानी है। आपने उनका एक कार्य करने की स्वीकृति दी थी, वह आप पूरा करें।' जीवक मंत्री ने कहा। __'हां, आप मुझे आज्ञा दें।' महाबल ने कहा।
कंदर्पदेव ने मुसकराते हुए कहा-'कल मैं आपको अपना कार्य बताऊंगा। अभी तो रात आ गई है । सब घर जाने के लिए उत्सुक हैं।'
महाबल समझ गया कि राजा कोई षड्यंत्र की बात सोच रहा है, इसलिए उसने मलया की ओर देखकर कहा--'मलया ! भय की बात नहीं है। कल प्रातःकाल राजा का कार्य संपन्न कर हम यहां से चलेंगे।' २६४ महाबल मलयासुन्दरी
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