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राजा ने सोचा--एक बार मलया विषमुक्त हो जाए। फिर आगे सोचेंगे। मन में ऐसा पाप रखकर राजा बोला-'सिद्धेश्वर ! यदि तुम मलया को विषमुक्त करने के साथ-साथ मेरा एक दूसरा कार्य भी कर दोगे तो मैं मलया को तुम्हें सौंप दूंगा किन्तु यदि मलया ने तुम्हें पतिरूप में स्वीकार न किया तो...?' _ 'तो मैं वैसे ही चला जाऊंगा।' महाबल ने कहा।
महाबल को लेकर महाराजा मलया के खंड में गए। महाबल ने पूरा खंड खाली करवा दिया। उसने चारों ओर शुद्ध पानी के छींटे दे एक आसन पर बैठने की तैयारी की। उस समय उसने महाराजा से भी कक्ष से बाहर जाने की प्रार्थना की।
कंदर्पदेव बाहर चले गए। महाबल ने खंड का द्वार अंदर से बंद कर सांकल लगा दी।
फिर उसने मलयासुन्दरी को उस शुद्ध की हुई भूमि पर सुलाया और विषापहार मंत्र की आराधना प्रारंभ की "सात बार मंत्र का जाप कर उसने अपनी कमर पर बंधे कपड़े से एक दिव्य मणि निकाली। वह अत्यन्त चमक रही थी। उसने उसे जल से धोया और जल को मलया के मुंह पर छिड़ककर मणि को ब्रह्मरंध्र पर रखा। __ कुछ ही क्षणों के पश्चान् मलया ने अपना एक हाथ हिलाया। पैरों को संकुचित कर धीरे-धीरे आंख उधाड़ी। __वह देखते ही चौंकी-स्वयं को सर्प ने डसा था "स्वामी अंधकूप में थे। यहां कैसे आ गए? वह अचानक उठने लगी। महाबल बोला-'प्रिये ! अब तू निर्भय है "राजा ने वचन दिया है कि वह मेरी पत्नी मुझे सौंपेगा।' _ 'स्वामिन् ! दुष्ट व्यक्ति के लिए वचनों का कोई मूल्य नहीं होता किन्तु आप अंधकूप से कैसे निकले ?' ____ महाबल ने पत्नी के मस्तक पर रखी मणि हाथ में ले ली। उसने कहा'प्रिये ! पहले तू अपनी बात बता' 'तुझे सर्प कैसे डस गया ?'
मलयासुन्दरी पति महाबल का सहारा ले बैठी और अपनी सारी घटना उसे सुनायी।
महाबल बोला-'प्रिये! मैं पुनः अंधकूप में जा गिरा। राजा के सिपाही कुएं के चारों ओर सावचेत होकर बैठ गए। अभी भी बैठे हुए हैं। उस अंधकूपसे बाहर आना असंभवथा । दिन बीता। रात के अंधकार में पुनःवह मणिधारी सांप आया। उसकी मणि के प्रकाश में मैंने ऊपर चढ़ने का प्रयास किया। मुझे देखकर मणिधारी सर्प अपनी बिंबी से आगे चला। मुझे प्रतीत हुआ कि वह कुछ संकेत कर रहा है। मैं उस बिंबी के पास गया। वहां एक पत्थर को हटाया। मुझे एक सुरंग दिखाई
महाबल मलयासुन्दरी २६३
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