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वहां छोड़ दिया।
मलया पुनः पुरुष रूप धारण न कर ले, इसलिए उसके पास किसी दासी को नहीं छोड़ा।
दिन बीता । रात आयी।
एक रक्षक दीपक रखने खंड में गया। मलया ने कहा- 'प्रकाश की कोई आवश्यकता नहीं है।'
वह बोला---'देवी ! यह मकान वर्षों से निर्जन पड़ा है. 'कोई जीव-जन्तु आए तो।'
'जो मौत से नहीं डरता, वह जीव-जंतु से क्यों डरेगा ?' मलया ने कहा । समय बीतने लगा। मध्यरात्रि का समय आया । इतने में खंड में से भयंकर चीख सुनाई दी।
तत्काल दीपक लेकर एक रक्षक अंदर गया। अन्य रक्षक भी आ गए । दृश्य देखकर सब कांप उठे।
एक भयंकर विषधर मलया के पैरों में डसकर वहीं चिपट गया था। मुख्य रक्षक ने अपनी तलवार से विषधर को मार डाला। मलयासुंदरी मूच्छित होकर गिर पड़ी।
मुख्य रक्षक ने महाराजा को यह दुःखद संदेश देने के लिए अश्वारोही को भेजा।
महाबल मलयासुन्दरी २६९
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