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५३. अंतिम विश्राम
जब तक मनुष्य के कर्म अशुभ होते हैं तब तक उसकी चालाकी अथवा प्रयत्न कारगर नहीं होते।
मलयासुन्दरी को दुर्लभ आम मिला''दुष्ट राजा के पंजे से निकलने के लिए उसने यौन-परिवर्तन भी कर डाला, किन्तु वह पलायन नहीं कर सकी। उसे शीलरक्षा का कवच मात्र मिला । उसने कोड़े के प्रहार सहन किए''उसकी सुन्दर पीठ पर कोड़े के चार-पांच प्रहारों के चिह्न स्पष्ट उभर आए थे। चमड़ी उधड़ गई थी."रक्त चू रहा था और उसे असह्य पीड़ा हो रही थी फिर भी उसे इस बात की प्रसन्नता थी कि उसने अपने शील की रक्षा की है।
मनुष्य की जब कसौटी होती है तभी उसकी शक्ति का परीक्षण होता है ।
हाथी के पैरों तले रौंदने की धमकी देकर राजा कंदर्पदेव चला गया था। जाते-जाते उसने अपने प्रहरियों को यह आदेश दिया था कि दुष्ट पुरुष को एक कोठरी में बंद कर दिया जाए और इस बात की सावधानी रखी जाए कि वह छलिया कहीं छिटक न जाए।
राधिका पुरुषवेशधारी मलया से बात करना चाहती थी और उसे यह समझाना चाहती थी कि इतनी मार सहन करने की अपेक्षा पटरानी बनना उत्तम है किन्तु उसे अवसर नहीं मिला। प्रहरियों ने मलया को एक कालकोठरी में बंद कर ताला लगा दिया। ___ मलया ने मन-ही-मन निश्चय किया था कि हाथी के पैरों तले रौंदे जाने पर या शरीर के टुकड़े-टुकड़े हो जाने पर भी उसका कुछ नहीं बिगड़ेगा। अमूल्य शील के समक्ष ये सारे कष्ट नगण्य हैं । मृत्यु भले ही आ जाए। अब कोई चिन्ता नहीं है।
जो मौत का वरण करने के लिए तत्पर रहता है उसको अन्य पीड़ाएं स्पर्श तक नहीं करतीं।
परन्तु मलयासुन्दरी का भाग्य उसे निरन्तर सहयोग दे रहा था। जिस खंड में वह बंद थी, वह वही खंड था जो पहले से उसके लिए निश्चित था। इस खंड
महाबल मलयासुन्दरी २८१
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