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एक पर्वत है। उसके दुर्गम शिखर पर बारहों महीने आम्रफल देने वाला एक आम्रवृक्ष है । वहां कोई मनुष्य जा ही नहीं सकता । संभव है यह तोता उसी वृक्ष से यह फल तोड़कर लाया है । यह उसकी चोंच से छूटा और मेरी गोद में आ गिरा।
इस ऋतु में आम दुर्लभ है । राजा का मन उस आम को खाने के लिए ललचा उठा । पर"
दूसरे ही क्षण राजा ने सोचा-मैं यह आम्रफल मलया को दे दूंगा। इस सुन्दर फल को देखकर मलया मेरे प्रति प्रेमातुर हो जाएगी।
यह सोचकर राजा ने उस आम्रफल को सुरक्षित रख दिया और यह निश्चय किया कि वह स्वयं ही मलया को आम्रफल देगा।
दूसरे दिन राजा ने एक स्वर्णथाल में आम्र रखा, एक सेवक को साथ ले मलया के कक्ष की ओर चला।
मलयासुन्दरी नवकार मंत्र का जाप संपन्न कर स्नानगृह में गई हुई थी।
राजा कंदर्पदेव जब मलया के भवन में आया तब मलया स्नानगृह में थी। राधिका भी स्नानगृह में ही थी और वह प्रसन्नतापूर्वक मलया को नहला रही थी।
राजा आम्रफल का थाल लिये मलया की प्रतीक्षा में एक आसन पर बैठ. गया।
महाबल मलयासुन्दरो २७५
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