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________________ धारण नहीं की ?' 'राधिका ! मन बहुत चंचल होता है'''कभी वह किसी कल्पना में बह जाता है और कभी उस कल्पना को तोड़कर दूसरी कल्पना में उलझ जाता है। पहले मैंने सोचा था, पुरुष वेश धारण कर दर्पण में देखू तो सही मैं कैसी लगती हूं."फिर दूसरे ही क्षण सोचा-पुरुष की पोशाक स्त्री के शरीर पर शोभित नहीं हो सकती।' देवी ! कल महाराजा पधारेंगे 'दो दिन से वे आसपास के गांवों में गए हुए हैं। यदि आप इस पुरुषवेश में महाराजा को आश्चर्यचकित करें तो कैसा रहे !' ___मलया बोली-'राधिका ! तू फिर वही बात दोहरा रही है। मेरा निश्चय अटल होता है। देवता भी मुझे अपने निश्चय से नहीं डिगा सकते।' राधिका ने सोचा-यह नारी अजेय है। यह भय या प्रलोभन से वशवर्ती नहीं बन सकती। ऐसी स्त्रियां प्रेम या सहानुभूति से ही वश में आती हैं। दूसरे दिन महाराजा कंदर्पदेव दौरे से आए। बलप्रयोग की इच्छा उनमें प्रबल हो रही थी। वे राधिका से मिले । राधिका ने मलया के दृढ़ निश्चय की बात कही । महाराजा कंदर्पदेव अवाक रह गए। उन्होंने राधिका से कहा- 'तू मुझे धैर्य रखने की बात कह रही है। मैं तेरी बात मानकर एक सप्ताह का समय और देता हूं। तू भी प्रयत्न कर और मैं भी उपाय सोचूंगा।' तीन दिन बीत गए। एक दिन महाराजा कंदर्पदेव अपने महल के वातायन में बैठे थे । संध्या का समय हो रहा था । पास में मैरेय का पात्र पड़ा था। राजा अकेला था। दासदासी दूसरे खंड में थे। राजा आकाश की ओर देख रहा था। उसका मन उपाय की खोज में लगा हुआ था । अचानक उसकी दृष्टि आकाश में उड़ते एक तोते पर पड़ी। उसकी चोंच में पका आम्रफल था। इसलिए राजा उसको आश्चर्य की दृष्टि से देख रहा था। - उसने सोचा--वह तोता आम कहां से ले आया ? यह इसको अपनी चोंच में पकड़े हुए कैसे उड़ रहा है ! तोता वातायन के ऊपर से गुजरा और चोंच से आम्रफल नीचे गिर पड़ा। वह आम्रफल सीधा राजा की गोद में आ गिरा। अपने श्रम को निरर्थक हुआ जानकर तोतां एक बार आम्रफल की ओर दृष्टि कर गन्तव्य की ओर उड़ गया। आम्रफल को देखते ही राजा का मन अत्यन्त आनंदित हो गया। उसने सोचा--नगर के उत्तर में 'छिन्नटंक' नाम का अतिविषम और सघन वन वाला २७४ महाबल मलयासुन्दरी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003181
Book TitleMahabal Malayasundari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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