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________________ ५१. आम्रफल सामने वाले के मन को समझने की प्राकृतिक शक्ति नारी की अपनी संपत्ति है। नारी के नयन जितने मोहक हैं, उतने ही वे मर्मवेधक और हृदय के आर-पार जाने वाले हैं। ___ मलयासुन्दरी महाराजा कंदर्प देव के हृदय को पहली नजर में ही जान गई थी। किन्तु राजा जब तक उसके साथ कोई प्रस्ताव न करे तब तक मौन रहना ही श्रेयस्कर है, यह मानकर मलया चुप थी। वह उस महल में पूर्ण परतंत्र थी। वह स्वतंत्र रूप से कहीं भी आ-जा नहीं सकती थी। राजा की ओर से प्रतिदिन नये-नये उपहार आते रहते थे। मलया के मन की शंका आकार ले रही थी। मलया पूर्ण स्वस्थ हो चुकी थी। उत्तम औषधि, उत्तम भोजन और उत्तम परिचर्या के कारण उसमें नयी चेतना जागी थी। उसका यौवन पहले से अधिक निखर रहा था। उसके मन में पुत्र-प्राप्ति की इच्छा प्रबल हो गई थी। भवन की मुख्य परिचारिका राधिका मलयासुन्दरी को समझाने का अवसर देख रही थी । एक दिन मलया नवकार मंत्र का जाप संपन्न कर विचारमग्न होकर बैठी थी। इतने में ही राधिका ने खंड में प्रवेश किया। मलया अपने पति और पुत्र के विचारों में खोयी हुई थी। उसे राधिका के आगमन का पता ही नहीं चला। राधिका ने मधुर स्वरों में कहा-'देवी ! आप कुछ चिन्तातुर लग रही हैं। आप मुझे अपनी वेदना बताएं, मैं उसके निवारण में सहायक बनूंगी। आप निःसंकोच मुझे बताएं।' मलया ने मुसकराकर कहा-'राधिका ! प्रत्येक मनुष्य के मन में छोटीबड़ी चिन्ता रहती है। जहां तक कर्म की पीड़ा का उपभोग करना होता है, उसको भोगना ही पड़ता है । कर्मों को भोगे बिना छुटकारा ही नहीं है।' ___ 'देवी ! कुछ वेदनाएं ऐसी होती हैं जिनका अंत लाया जा सकता है। आपकी वेदना को जाने बिना मैं कैसे सहायक बन सकती हं?' महाबल मलयासुन्दरी २७१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003181
Book TitleMahabal Malayasundari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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