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डालकर मार डालेगा अथवा मुझे सतीत्व से भ्रष्ट करेगा।
मलया इस प्रकार सोच रही थी। इतने में राजा कंदर्पदेव आ पहुंचा। उसने राजवैद्य से कहा---'क्या यह सुन्दरी स्वस्थ हो जाएगी?'
'हां, महाराज! आठ दिन के औषधोपचार से यह पूर्ववत् स्वस्थ हो जाएगी।'
राजा ने मलया से पूछा-'देवी ! तेरे माता-पिता कौन हैं ? तू सागर में से किनारे कैसे आयी? क्या तेरा वाहन सागर में टूट गया या किसी ने तुझे सागर में फेंक दिया ?' _ 'राजन् ! अपने किन्हीं कर्मों के प्रभाव से मैं अकथनीय वेदना और विपत्ति में फंसी हुई हूं। मेरा परिचय प्राप्त कर आप भी दुःखी बन जाएंगे।'
मलया ने अपना कोई भी परिचय नहीं दिया । 'तेरा नाम क्या है ? 'मलयासुन्दरी।'
'सरस नाम है "तू यहां आराम से रह 'अब तेरे सभी दुःखों का अन्त आ गया है।' ऐसा आश्वासन देकर राजा ने राजवैद्य से कहा-'मलयासुन्दरी के हाथों पर किसी ने शस्त्र से प्रहार किया है।'
'हां, महाराज ! मैंने इसकी ‘सद्यरोपण चिकित्सा' की है। आठ प्रहर के पश्चात् इसके शरीर पर कोई घाव नहीं रहेगा।'
आठ दिन बीत गए।
मलयासुन्दरी ने सारी व्यवस्था को देखकर जान लिया था कि राजा कंदर्पदेव की आंखें राजा की आंखें नहीं हैं, किन्तु एक रूप के शिकारी की आंखें हैं, एक भोगी की आंखें हैं।
दिन बीतने लगे। राजा को लगा कि मलयासुन्दरी स्वर्ग की अप्सरा है। इसका उपभोग करना महान् भाग्य की बात है। ___ मलयासुन्दरी को अपनी रानी बनाने का स्वप्न संजोए राजा ने राधिका को बुलाकर कहा-'राधिका ! इस स्त्री में जितना रूप है, उतना ही तेज है। यह अपना परिचय नहीं बता रही है । यह निश्चित ही किसी बड़े कुल की है। अपने कुल पर कलंक न लगे, इसीलिए परिचय छिपा रही है। मुझे परिचय से कोई मतलब नहीं है। मैं तो इसे अपनी अंकलक्ष्मी बनाना चाहता हूं। तुझे यह कार्य करना है। किसी भी उपाय से मलया को समझा-बुझाकर मेरे प्रति आसक्त करना है।'
'महाराज ! आपका यह कार्य सरलता से पार लगा दूंगी। मलयासुन्दरी दुःखी नारी है। इस संसार में उसका कोई सहारा नहीं है। आप-जैसे समर्थ राजा का आश्रय पाकर यह निहाल हो जाएगी।' राधिका ने कहा।
महाबल मलयासुन्दरी २६६
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