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________________ ऊर्मिला ने एक तेज कटारी ला दी। मलया ने उसे अपनी कमर में छिपाकर बांध ली। दूसरा दिन पूरा हुआ। रात आयी और साथ ही साथ बलसार ने मलया के खंड में प्रवेश किया । उसने आते ही ऊर्मिला से कहा—'तू बाहर जा।' ऊर्मिला धड़कते हृदय से बाहर निकल गई। बलसार ने खंड का द्वार बंद कर सांकल लगा दी। उसने मलया से कहा-'प्रिये ! प्रेम से मेरे वश में होना ही श्रेयस्कर है। तू आग्रह छोड़ दे।' मलया ने अपना दृढ़ निश्चय दोहराया। बलसार आज निश्चय करके ही आया था। उसने मलया को समझाया पर वह अपने निश्चय पर अटल रही। बलसार बोला—'क्या तुझे तेरा पुत्र प्रिय नहीं है ?' 'प्रिय है और वह प्राणों से भी अधिक प्रिय है, किन्तु मेरे शील से वह अधिक प्रिय नहीं है।' 'मलया ! आज मैं किसी भी प्रकार से तुझे प्राप्त करके ही रहूंगा। मैं तेरे चरित्र को भ्रष्ट कर तेरे शील के गर्व को चकनाचूर करना चाहता हूं। तू मान जा और सहर्ष समर्पण कर दे।' _ 'सेठ ! जब तक मेरे शरीर में प्राण हैं, कोई मुझे शीलभ्रष्ट नहीं कर सकता। यह भारतीय नारी का रूप है।' यह सुनते ही बलसार उठा और मलया की ओर लपका। मलया पीछे हट गयी और बलसार धड़ाम से नीचे बिछी शय्या पर जा पड़ा। दूसरी बार कामांध बलसार ने दोनों हाथ फैलाकर मलया को बांहों में जकड़ना चाहा, पर मलया छिटक गई और बलसार भीत से जा टकराया।। वह पुनः खड़ा हुआ और बोला-'इतना अहंकार? आज मैं तेरे अहं को पैरों तले रौंद दूंगा और अपनी वासना पूर्ण करूंगा।' कहता हुआ बलसार आगे बढ़ा और तपाक से मलया का हाथ पकड़ लिया। ____ मलयासुंदरी ने एक झटके में अपना हाथ छुड़ा लिया और बलसार के जबड़ों पर जोर से चपेटा मारते हुए कहा-'दुष्ट ! नराधम ! पापी ! अपना काला मुंह लेकर शीघ्र भाग जा।' ___इस तीव्र चपेटा-प्रहार से बलसार तिलमिला उठा । उसका एक दांत टूटकर बाहर आ पड़ा। मह से रक्त बहने लगा। वह क्रोधावेश में बोला---'आज तूने अपने भाग्य का तिरस्कार किया है।' यह कहता हुआ वह पुनः मलया का हाथ पकड़ने के लिए आगे बढ़ा । मलया के हाथ में खुली कटार देखकर वह स्तब्ध रह गया । उसके पैर रुक गए । मलया बोली-'शैतान, यदि मैं चाहूं तो महाबल मलयासुन्दरी २६१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003181
Book TitleMahabal Malayasundari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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