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साथ ले चंद्रावती नगरी की ओर प्रस्थान कर देगी ।
जैसे दीपक का आलोक होता है, वैसे ही आशा का आलोक होता है । आशा IT प्रकाश भीतर में पलता है । इसी आशा के आलोक में मनुष्य अपनी अनन्त वेदनाओं को भुला देता है । मनुष्य को यह ज्ञात नहीं है कि आशा स्वयं एक ठगिनी है । मनुष्य को फंसाने वाली यदि कोई वस्तु संसार में है तो वह आशा ही है । जो स्वयं ठगने वाली हो, उसका प्रकाश कैसे होगा ?
रात्रि का प्रथम प्रहर बीत गया । मलया अपने स्वामी के स्मृति चिह्न बालक को पास में ले सो गयी। सोने से पूर्व उसने ध्यानस्थ होकर नमस्कार महामंत्र का जाप किया। तापसमुनि ब्रह्ममुहूर्त में उठ ध्यान की उपासना करने लगे ।
उषा का प्रकाश पृथ्वी पर फैले, उससे पूर्व ही मलया शय्या से उठ गयी. शिशु अभी भी घोर निद्रा में सो रहा था ।
मलया ने पुत्र को एक वस्त्र ओढ़ाया। वह बाहर आयी तब तक तापसमुनि उस पर्वत की ओर प्रस्थान कर गए थे 1
मलया ने प्रातः कर्म संपन्न किए। कुटीर की सफाई की।
इसी समय आश्रम के पीछे के मार्ग से बलसार नामक सार्थवाह का सार्थ उस मार्ग से निकला। रात्रि में वह सार्थ इसी वनप्रदेश में विश्राम करने ठहरा था । प्रातःकाल होते ही पूरा सथवाडा अग्रिम गंतव्य की ओर चल पड़ा। सभी लोग 'सागर तिलक' नगर की ओर जा रहे थे । बलसार श्रेष्ठी उसी नगर का बड़ा व्यापारी था ।
मलया को यह ज्ञात था कि आश्रम के पीछे, कुछ ही दूरी पर एक राजमार्ग है किन्तु यह राजमार्ग आबाद नहीं था । वर्ष भर में एक-दो बार कोई पथिक या सार्थ इस मार्ग पर आता था। मुनि ने मलया को यह जानकारी दी थी। मलया ने कभी इस मार्ग को देखा नहीं था ।
और आज जब पूरा सार्थ उस मार्ग से गई हुई थी । यदि वह आश्रम में होती तो सुनती।
गुजर रहा था, तब मलया नदी पर सार्थ का कोलाहल अवश्य ही
और सोया बालक जाग उठा बालक का सबसे बड़ा शस्त्र होता है रुदन पास में मां को न देखकर बालक रोने लगा ।
सारा सार्थ मार्ग पर आगे बढ़ चुका था । केवल बलसार का रथ पीछे आ रहा था । उसने इस अरण्य में बालक का रुदन सुना । तत्काल उसने सारथी को रथ रोकने का आदेश दिया । वह अपने साथी के साथ रथ से नीचे उतरा । जिस ओर से बालक के रोने की आवाज आ रही थी, वह उसी ओर चल पड़ा । आगे आते ही उसे दो कुटीर दीखे । उसने कांटों की बाड़ को लांघकर आश्रम में प्रवेश किया । कुटीर में आकर देखा कि कोई मनुष्य नहीं है, केवल
२४२ महाबल मलयासुन्दरी
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