________________
नष्ट-भ्रष्ट कर डाला है । मैं कनकावती को ढूंढ़ने के लिए सैनिकों को भेजता हूं।'
इतना कहकर महाबल कक्ष से बाहर आ गया। उसका मन विषाद से खिन्न हो रहा था। मलया के वध की बात सुनते ही उसका हृदय विदीर्ण हो चुका था। मां बनने वाली नारी की हत्या ! . पूरे महल को छान डाला, कनकावती का कहीं पता नहीं चला।
महाबल ने सोचा-'अरे! जाते-जाते मलया ने कोई संदेश लिखकर तो नहीं छोड़ा है। वह तत्काल शयनकक्ष की ओर गया। भीतर जाते ही उसकी सारी स्मृतियां तरोताजा हो गईं । एक दिन था कि वह कक्ष सजीव-सा दीख रहा था और आज वह निर्जीव-सा पड़ा है। ___ महाबल ने मात्र बृहखंड देखा, लघुखंड को नहीं देखा। यदि वह उसे खोलता तो तृषा और भूख से व्यथित सच्ची राक्षसी कनकावती उसे मिल जाती।
पूरे कक्ष की छानबीन कर युवराज मुड़ा और उसके पैरों से टकराकर एक त्रिपदी जमीन पर लुढ़क गई।
उस त्रिपदी की आवाज सुनकर कनकावती चौंकी और उसने कपाट पर दस्तक दी।
कपाट पर दस्तक की आवाज को सुनकर युवराज चौंका। उसने तत्काल उस लघुकक्ष का द्वार खोल दिया। लड़खड़ाती हुई कनकावती बाहर निकली और धड़ाम से जमीन पर गिर पड़ी।
युवराज ने तत्काल उसे उठाया। कनकावती ने संकेत से पानी मांगा। उसे 'पानी पिलाया। वह स्वस्थ हुई।
.. युवराज उस लघुखंड में गए। वहां हरताल का लेप, घोड़े के बाल की लघु घघरी, अन्यान्य वस्तुएं देखीं। इन चीजों को देखकर महाबल ने समझ लिया कि महाराजा ने जिस राक्षसी का रूप देखा था, वह मलया नहीं, स्वयं कनकावती
थी।
. युवराज ने कनकावती से कहा- 'मैंने तेरा क्या अकल्याण किया था कि तूने मेरे जीवनसाथी को मरवा डाला। मेरी एक पांख तोड़ दी। सच-सच बता, अन्यथा तुझे अभी मौत के घाट उतार दूंगा। मैं तेरी चमड़ी उधड़वा
दूंगा । बोल, सही-सही बता । तूने ही राक्षसी का रूप बनाया था। तेरे सारे 'चिह्न मुझे प्राप्त हो गए हैं । तूने मेरे पिता को धोखा देकर एक निर्दोष नारी पर झूठा आरोप लगाया। सच-सच बता।'
'पिताश्री ! आपको दोषी क्यों मानूं ! मेरे ही कर्मों का विपाक है।' उसने कनकावती की ओर देखकर कहा-'दुष्टे ! मैं एक स्त्री पर हाथ उठाना नहीं चाहता। तुझे मार देने पर भी अब मुझे मेरी मलया प्राप्त नहीं हो सकेगी। २२८: महाबल मलयासुन्दरी
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org