________________
के ललाट पर लग तिलक का पाछ दिया। कुछ ही क्षणा के पश्चात् भयकर. सर्प महाबल के मूल रूप में आ गया।
योगी ने पूछा-'किसी प्रकार का कष्ट तो नहीं हुआ ?' 'नहीं, योगिराज!' 'आपको भूख लगी होगी?'
'हां, पर मुझे रात्रि-भोजन का त्याग है, इसलिए आप चिन्ता न करें।" महाबल बोला।
फिर दोनों अग्निकुण्ड के पास गए। योगी स्नान से शुद्ध होकर आया। फिर मंत्रोच्चार के साथ अग्नि में विशेष द्रव्य डाले। अग्नि प्रज्वलित हुई, तब योगी ने महाबल से कहा-'युवराज ! आज टीक मध्यरात्रि के समयः उस नक्षत्र का योग होगा किन्तु आज मैं इतनी कड़ी व्यवस्था करूंगा कि कोई भी यक्ष या व्यन्तर देव शव को न ले जा सके': 'इसलिए आप अब शव को सावधानीपूर्वक ले आएं.आज मेरा यह अनोखा प्रयोग सिद्ध होगा और शताब्दियों के बाद मेरे हाथ से 'स्वर्ण-पुरुष' की सृष्टि होगी।'
महाबल योगी को प्रणाम कर चला और कुछ ही क्षणों में वट-वृक्ष के पास आ पहुंचा। उसने लोभसार के शव की ओर देखा । शव पूर्ववत् लटक रहा था। शव अखंड था। उसमें कोई विकृति नहीं हुई थी। आश्चर्य की बात तो यह थी. कि शव से किसी प्रकार की दुर्गन्ध नहीं आ रही थी।
महाबल वट-वृक्ष पर चढ़ा। उसने सबसे पहले शव का परीक्षण किया... शव निष्प्राण और निश्चेष्ट था। उसने शव की चोटी को पकड़कर वृक्ष से नीचे उतारा और उसे कंधे पर लादकर चल पड़ा। चलते-चलते उसने वट-वृक्ष की ओर एक बार देखा।
योगी ने मंत्रित वर्तुल तैयार कर रखा था। इस वर्तुल में जल और अनेक गंध द्रव्य छिड़के जा चुके थे और अग्निकुंड में अग्नि भी तीव्रता से प्रज्वलित हो गई थी। ___महाबल शव को कंधे पर लादे आ पहुंचा। योगी ने शव पर पड़े सारे आवरण हटाए और शव को मंत्रपूत कर महाबल से कहा- 'युवराज ! शव को इस वर्तुल में रख दो ''अब यह शव किसी भी परिस्थिति में यहां से हिल नहीं सकता'. 'कोई भी शक्ति इसको उठाकर नहीं ले जा सकती।' ___महाबल ने लोभसार के नग्न शव को सावधानी से वर्तुल में रखा।
योगी ने मंत्रोच्चारण करते हुए शव पर पानी की अंजलियां छोड़ी। फिर योगीराज ने मंत्रों का उच्चारण करते हुए शव के चारों ओर पानी की कार लगा दी।
फिर योगी ने महाबल को दूसरे वर्तुल में नंगी तलवार हाक में लिये खड़े १९४ महाबल मलयासुन्दरी
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org