SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 10
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १. दिव्य गुटिका आधी रात बीत चुकी थी। अन्धकार ने पृथ्वी को अपने उदर में समा लेने का प्रयास कभी का प्रारंभ कर लिया था। फिर भी अन्धकार के पंजों में फंसी हुई पृथ्वी सदा की भांति स्वस्थ थी। उसे यह भान था कि अन्धकार सदा प्रयत्न करता रहा है, पर वह काल की गति को रोकने में कभी सफल नहीं हुआ."उसे स्वयं को ही विदा होना पड़ा है। विजय प्रकाश की होती है, अन्धकार की नहीं। इस सत्य को जानते हुए शैतान कभी अपना दोष नहीं देखता। ६ अन्धकार सघन हो रहा था । पृथ्वीस्थानपुर के पूर्व में एक सघन वन था। उसे काम्यवन कहते थे। आसपास में छोटी-बड़ी पहाड़ियां, छोटी नदियां और यत्र-तत्र झरने थे। हिंस्र पशुओं के कलरव से वह वन भयानक लगता था। उस वन में दिन में भी आना-जाना साहस का कार्य माना जाता था। ___ उस भयंकर काम्यवन के दक्षिण छोर पर एक छोटी नदी के किनारे महान वैज्ञानिक आचार्य पद्मसागर एक छोटे से सुन्दर आश्रम में रहते थे। उस काम्यवन में वे अकेले ही रहते थे, क्योंकि उस वन की भयंकरता के कारण कोई भी उनके साथ रहना नहीं चाहता था। यदि वे किसी शिष्य को अभय देकर ले भी आते तो वह दो-चार दिन से अधिक वहां टिक नहीं पाता था। ___ लोग यह मानते थे कि काम्यवन में नरभक्षी राक्षस, भयंकर व्यन्तर और अनेक दुष्ट जीव रहते हैं। वहां रहने वाला कोई भी मनुष्य अधिक दिनों तक जीवित नहीं रह सकता। एक समय था जब यह वन संतों और योगियों का धाम था, किन्तु यह सब सौ वर्ष पूर्व की बात है''आज तो यह काम्यवन मनुष्य के लिए मौत का धाम बना हुआ है। कोई भी मनुष्य वहां जाना मृत्युधाम को जाना मानता था। इस लोकश्रुति के आधार पर ही आचार्य पद्मसागर ने वहां अकेला रहना ही पसन्द किया था। वे विज्ञान के आराधक, उपासक और स्वामी थे। वे मानते थे महाबल मलयासुन्दरी १ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003181
Book TitleMahabal Malayasundari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy