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________________ लेश्या : एक विश्लेषण | ६६ अभिवृद्धि होती हैं । गुलाबी रंग से प्रेम विषयक भावनाएँ जाग्रत होती हैं । हरे रंग से मन में स्वार्थ की भावनाएं पनपती हैं । लाल व काले रंग का मिश्रण होने पर मन में क्रोध भड़कता है। ___जब हम इन दोनों प्रकार के रंगों के वर्गीकरण पर तुलनात्मक दृष्टि से चिन्तन करते हैं तो ऐसा ज्ञात होता है कि प्रत्येक रंग प्रशस्त और अशप्रस्त दो प्रकार का है । कहीं पर लाल, पीले और सफेद रंग अच्छे विचारों को उत्पन्न नहीं करते इसलिए वे अप्रशस्त व अशुभ हैं और कहीं पर वे अच्छे विचारों को उत्पन्न करते हैं, अतः वे प्रशस्त व शुभ हैं । क्रोध से अग्नि तत्त्व प्रदीप्त हो जाता है, उसका वर्ण लाल माना गया है । मोह से जल-तत्त्व की अभिवृद्धि हो जाती है, उसका वर्ण सफेद या बैंगनी माना गया है । भय से पृथ्वी-तत्त्व प्रधान हो जाता है, इसका वर्ण पीला है । लेश्याओं के वर्णन में भी क्रोध, मोह, और भय आदि अन्तर् में रहे हुए हैं और उनका मानस पर असर होता है। कहीं पर श्याम रंग को भी प्रशस्त माना है, जैसे-नमस्कार महामन्त्र के पदों के साथ जो रंगों की कल्पना की गयी है उसमें 'नमो लोए सव्वसाहूणं' का वर्ण कृष्ण बताया है । साधु के साथ जो कृष्ण वर्ण की योजना की गयी है वह कृष्णलेश्या जो निकृष्टतम चित्तवृत्ति को समुत्पन्न करने का हेतु अप्रशस्त कृष्ण वर्ण है उससे पृथक है, कृष्णलेश्या का जो कृष्णवर्ण है उससे साधु का जो कृष्ण वर्ण है वह भिन्न है और प्रशस्त है। पाश्चात्य देशों में वैज्ञानिक रंगों के सम्बन्ध में गम्भीर अध्ययन कर रहे हैं। कलर थिरेपी रंग के आधार पर समुत्पन्न हुई है। रंग से मानव के चित्त व शरीर की भी चिकित्सा प्रारम्भ हुई है जिसके परिणाम भी बहुत ही श्रेष्ठ आये हैं ।1।। आधुनिक विज्ञान की दृष्टि से विद्युत चुम्बकीय तरंगें बहुत ही सूक्ष्म हैं । वे विराट विश्व में गति कर रही हैं । वैज्ञानिकों ने विद्युत चुम्बकीय स्पेक्ट्रम का सामान्य रूप से विभाजन इस प्रकार से किया है : रेडियो तरंगें | सूक्ष्म तरंगें | अवरक्त एक्स-रे दृश्यमान परा बैंगनी || गामा किरणें १०६१०२ १ १०-२ १०-४ तरंग दैर्घ्य __प्रस्तुत चार्ट से यह स्पष्ट होता है कि विश्व में जितनी भी विकिरणें हैं उन विकिरणों की तुलना में जो दिखायी देती हैं उन विकिरणों का स्थान नहीं-जैसा है। पर उन विकिरणों का स्थान बहुत ही महत्त्वपूर्ण है जो विकिरणे दृष्टिगोचर होती हैं । 1 देखिए --- 'अणु और आभा' ले० प्रो० जे० सी० ट्रस्ट । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003180
Book TitleChintan ke Vividh Aayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1982
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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