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________________ अपनी बात : अपनी कलम से सन् १९७५ का वर्षावास पूना में था। वहाँ प्रसिद्ध विद्वान् डा० एस० एस० बारलिंगे जी काफी सम्पर्क में आये। एक बार उन्होंने मुझसे स्नेहपूर्वक कहा-'मैं जैन दर्शन पर पूना विश्वविद्यालय में संगोष्ठी का आयोजन कर रहा हूँ। उसमें पं० दलसुख मालवणिया, पं० कैलाशचन्द्र जी, पं० दरबारीलाल कोठिया, डा० संगमलाल पाण्डे, डा० टी० जी० कलघटगी आदि भारत के विविध अंचलों से विज्ञगण भाग लेने आयेंगे । आपको भी संगोष्ठी में भाग लेना है । तथा शोध-पत्र भी पढ़ना है।' __मैंने बालिंगे जी से पूछा “मुझे किस विषय पर शोध-पत्र पढ़ना होगा ? उत्तर में उन्होंने बताया-आप चाहें तो 'मोक्ष और मोक्ष मार्ग' पर, चाहें तो 'ईश्वर' पर और चाहें तो 'लेश्या' पर शोध-पत्र पढ़ें। मैंने तीनों ही विषयों पर शोध-पत्र तैयार किये । संगोष्ठी का कार्यक्रम बड़ा ही सफल रहा। मैंने समयाभाव से 'मोक्ष और मोक्ष मार्ग' पर शोध-पत्र पढ़ा। जिसे सभी मूर्धन्यमनीषियों ने रुचिपूर्वक सुना और पसन्द किया । ये तीनों विषय ऐसे थे, जिस पर विराट्काय ग्रन्थ तैयार हो सकते थे, पर संगोष्ठी में समय की मर्यादा को लक्ष्य में रखकर मैंने बहुत ही संक्षेप में प्रत्येक विषय पर चिन्तन किया। समय-समय पर प्रकाशित होने वाले ग्रन्थों पर प्रस्तावना के रूप में कुछ विचार दिये और कुछ स्वतन्त्र निबन्ध भी लिखे। जिन विचारों का मूल्य शाश्वत रहा है, उनका संकलन प्रस्तुत ग्रन्थ में कर दिया गया है। इसमें कितने ही लेख अप्रकाशित हैं, तो कितने ही लेख पूर्व प्रकाशित भी हुए हैं । यह संकलन एक समय में और एक साथ बैठकर लिखा नहीं गया है, इसलिए विविधता होना स्वाभाविक है । विविधता में एक प्रकार का आनन्द भी है; षड्रस का स्वाद है। जैन दर्शन, धर्म, साहित्य, और संस्कृति का विषय बहुत ही व्यापक और गहन है, इसे समझने के लिए गम्भीर अध्ययन अपेक्षित है, और साथ ही एकाग्र चिन्तन व निर्व्याघात समय भी। आज के पाठक के पास यह सब कहाँ हैं ? उसके साथ भी परिस्थितियों की विवशता है, संक्षेप में, सार रूप में कुछ जानकर तृप्ति अनुभव कर लेना ही उसे पसन्द है। पाठकों की इसी रुचि को, स्थिति को ध्यान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003180
Book TitleChintan ke Vividh Aayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1982
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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