SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 63
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५० | चिन्तन के विविध आयाम : खण्ड १ वर्तन होता रहा है । कभी प्राकृतिक शक्तियों में देवी- कल्पना कर उन्हें ईश्वर मानकर उनकी उपासना की गयी, कभी विविध देवी-देवताओं की कल्पना कर उनमें ईश्वरत्व का आरोप किया गया । कभी ईश्वर को एक विशिष्ट शक्ति के रूप में मानकर उसकी अर्चना की गयी। कभी साकार ईश्वर को तो कभी निराकार ईश्वर को माना गया। इस प्रकार ईश्वर सम्बन्धी विचारधाराओं में प्राग् ऐतिहासिक काल से लेकर आधुनिक युग तक जो विकास हुआ है, उसको हम संक्षेप में ग्यारह भागों में विभक्त कर सकते हैं ( १ ) प्राकृतिक शक्तियों को ईश्वर मानना । (२) जीवन या प्रकृति में घटित चमत्कारों का ईश्वरीकरण । (३) रोग या कष्ट से मुक्त करने वाली शक्तियों की पूजा । (४) अपने से बड़े, भयावह प्राणी का, आदर भावना से दैवीकरण । (५) राजा, सम्राट या वीर पुरुष का दैवीकरण । (६) पुरोहित या धर्मगुरु को ईश्वर मानना । (७) कई छोटे-बड़े देवी-देवताओं की माला में सुसूत्रता लाने के लिए एक महादेव की कल्पना | (८) मातृरूपा महाशक्ति या पराशक्ति की पूजा । (c) देवाधिदेव की अमूर्त कल्पना -- ब्रह्म, ऋतु, परम तत्त्व आदि । (१०) यह मानना कि सर्व धर्मों के मूल में एक ही ईश्वर तत्त्व अनुस्यूत है । विविध धर्मों के तुलनात्मक अध्ययन से ऐसी सर्व धर्म सम्भावना का विस्तार | (११) ईश्वर वस्तुतः परमात्मा, निरंजन, निर्विकार, विशुद्ध, सर्वोत्कृष्ट चेतन स्वरूप - आत्मा है, जो सर्वज्ञ, सर्वदर्शी, वीतराग और अनन्त सामर्थ्य सम्पन्न है । वह जगत का कर्ता हर्ता, धर्ता है, क्योंकि जगत शाश्वत होने के कारण कभी उत्पन्न नहीं होता । ईश्वर की उपलब्धि के लिए विश्व के विविध धर्मों ने अपनी-अपनी दृष्टि से मार्ग प्रतिपादन किये हैं । यदि हम शब्दों के जाल में न उलझकर समन्वयात्मक दृष्टि से चिन्तन करें तो सहज ही परिज्ञात होता है कि सभी चिन्तकों का स्वर एक ही रहा है । सभी ने हृदय, मस्तिष्क और कर्मेन्द्रिय इन तीनों के माध्यम से आत्म-विकास हेतु तीन मार्ग प्रदर्शित किये हैं । तुलनात्मक दृष्टि से विविध धर्मो के तीन मार्ग दिये जा रहे हैं। क्रमांक धर्म १. हिन्दू २. ३. ४. ५. बौद्ध जैन मस्तिष्क Jain Education International ज्ञानमार्ग इसलाम यूनानी ईसाई इल्यूमिनेशन हकीकत ( अकायद) ग्नोसिस सम्यक् दृष्टि सम्यग्ज्ञान हृदय भक्तिमार्ग तरीकत ( इबादत ) शरीयत ( मामिल) इनर्जिया चैरिटी पाएटास मिस्टिसिज्म सम्यक्-संकल्प सम्यग्दर्शन कर्मेन्द्रिय कर्ममार्ग For Private & Personal Use Only सम्यक्-व्यायाम सम्यक् चारित्र www.jainelibrary.org
SR No.003180
Book TitleChintan ke Vividh Aayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1982
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy