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भारतीय चिन्तन में मोक्ष और मोक्ष मार्ग | १७
भारतीय चिन्तन में कितने ही चिन्तकों ने साधना के इन त्रिविध माध्यमों में से किसी एक मार्ग को प्रमुखता दी है और उससे मुक्ति स्वीकार की है - जैसे आचार्य शंकर ने ज्ञान को अत्यधिक महत्व दिया है, रामानुज आदि ने भक्ति मार्ग को प्रमुखता दी है | पर जैन दार्शनिकों ने किसी एकान्तवाद को स्वीकार नहीं किया । उनके अनुसार दर्शन के बिना ज्ञान नहीं होता और ज्ञान के अभाव में आचरण में निर्मलता नहीं आती और बिना सम्यक्आचरण के मुक्ति नहीं है ।
इसकी तुलना सुकरात, प्लेटो आदि ग्रीक दार्शनिकों द्वारा उल्लिखित जीवन के तीन लक्ष्य - थ (सत्य), ब्यूटी ( सौन्दर्य) और गुडनेस (अच्छाई ) के साथ की जा सकती है।
इस प्रकार समन्वय की दृष्टि से देखा जाये तो ज्ञान, भक्ति और कर्म; शील, समाधि और प्रज्ञा; सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र यह मोक्ष मार्ग है । शब्दों में अन्तर होने पर भी भाव सभी का एक जैसा है । शब्द जाल में न उलझकर सत्य तथ्य की ओर ध्यान दिया जाये तो भारतीय दर्शनों में मोक्ष और मोक्ष मार्ग की कितनी समानता है, यह सहज ही परिज्ञात हो सकेगा ।
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