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________________ सन्तकवि आचार्यश्री जयमल्लजी ८५ भावनाओं का पूर्ण अभाव है। रीतिकाल का कवि काव्य रचना के साथ ही काव्यगत सिद्धान्तों का विश्लेषण कर आचार्य बनता था। किन्तु आचार्य जयमल्ल जी महाराज ने लक्षण शास्त्र का निर्माण कर आचार्यपद प्राप्त नहीं किया, अपितु आचार धर्म का पालन कर वे आचार्य बने । उनका व्यक्तित्व उस युग के कवियों से सर्वथा पृथक है। सूरदास के काव्य में सौन्दर्य की प्रधानता है । तुलसीदास के काव्य में शक्ति की प्रतिष्ठा है। बिहारी आदि के काव्य में शृगार की प्रधानता है । भूषण आदि के काव्य में वीरत्व का निरूपण है । वहाँ आचार्य जयमल्ल जी म० के काव्य में शील का विश्लेषण है। शील का वर्णन कर उन्होंने उस युग के राष्ट्रीय चरित्र को उच्च धरातल पर प्रतिष्ठित किया। उनके काव्य में अध्यात्मवाद की प्रधानता है, तदपि उसमें जीवन के हर पहलुओं की व्याख्या भी बड़े रोचक ढंग से मिलती है । ___आचार्यश्री जयमल्ल जी म० की उपलब्ध कुछ रचनाओं का संकलन-आकलन जयवाणी ग्रन्थ में किया गया है। जो (1) स्तुति (2) सज्झाय (3) उपदेशीय पद (4) चरित्र-चर्चा दोहावली के रूप में चार खण्डों में विभक्त है। उनके अतिरिक्त पूज्यश्री जयमल ज्ञान भण्डार पीपाड़ और श्री विनयचन्द ज्ञान भण्डार जपुयर से अनेक प्रकाशित रचनाएँ प्राप्त हुई हैं और भी भण्डारों की अन्वेषणा-गवेषणा करने से बहुत सी रचनाओं के मिलने की आशा है । अतः विद्वानों को इधर प्रयास करना चाहिए । अस्तु । जैन आगम साहित्य द्रव्यानुयोग, गणितानयोग, धर्मकथानुयोग और चरण करणानुयोग के रूप में चार भागों में विभक्त है। आचार्यश्री जयमल्ल जी म० ने द्रव्यानुयोग के सम्बन्ध में स्वतन्त्र न लिखकर कथा के माध्यम से यत्र-तत्र उसका निरूपण किया है। सम्यक्त्व, गुणस्थान, दण्डक, पाप, कर्म और मोक्ष आदि के सम्बन्ध में उनकी स्फुट रचनाएँ भी मिलती हैं । चरण करणानयोग के सम्बन्ध में कवि ने अनेक रचनाएँ बनाई हैं। सज्झाय स्तवन, चौबीसी आदि । धर्म कथानुयोग तो आचार्यश्री को अत्यधिक प्रिय रहा है । कथाओं के माध्यम से आध्यात्मिक, सामाजिक, दार्शनिक आदि बातों का जितना सुन्दर चित्रण हो सकता है उतना अन्य माध्यम से नहीं । कहानी ही विश्व के सर्वोत्कृष्ट काव्य की जननी है। कथा के प्रति मानव का सहज आकर्षण है। उसमें जीवन की मधुरिमा अभिव्यंजित होती है । आचार्यश्री जयमल्ल जी महाराज ने महाकाव्य की रचना नहीं की है। कथाओं की रचना में इतिवृत्त की प्रमुखता है। उन्होंने अपने कथा-काव्य को अध्याय और सर्गों में विभक्त न कर ढालों में विभक्त किया है। आगमिक कथाओं को ही उन्होंने अपने काव्य में प्रमुखता दी है । काव्य कथा के मुख्य पात्र प्रायः राजघराने के, सामन्त व श्रेष्ठीजन हैं जो मोह पाश के बन्धन को तोड़कर साधना के महामार्ग पर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003180
Book TitleChintan ke Vividh Aayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1982
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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