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भारतीय साहित्य में काव्य-मीमांसा | ७७
रुद्र का मानना है कि वह महती घटना होनी चाहिए। उसमें पाँच नाट्य- संधियों की योजना होनी चाहिए जिससे कथानक विस्तृत हो सके । कथानक ऐतिहासिक या पुराण पर आधृत होना चाहिए । रुद्रट की दृष्टि कथानक से कल्पनाप्रधान भी हो सकता है । रुद्रट और हेमचन्द्र के मतानुसार महाकाव्य में अवान्तर कथाएँ होनी चाहिए जिससे गम्भीर और व्यापक अनुभवों का परिज्ञान हो सके । महाकाव्य में प्राकृतिक सौन्दर्य सुषमा का सजीव चित्रण होता है । आचार्य हेमचन्द्र का मानना है 'यदि मूलकथा में प्राकृतिक सौन्दर्य आदि पर चिन्तन न हो सके तो अवान्तर कथाओं में इसका समावेश करना चाहिए।' भोजदेव का अभिमत है 'इन सभी विषयों का समावेश करना कठिन है । किन्तु यदि कवि काल का वर्णन कर देता है तो देश का वर्णन करना उतना आवश्यक नहीं है । कालवर्णन आवश्यक है । अमरचन्द्र ने षट्ऋतुओं का वर्णन और अन्य वर्णन विस्तार से करने का सूचन किया है । रुद्रट और विश्वनाथ का मानना है अतिप्राकृतिक और अलौकिक तत्त्वों का होना आवश्यक है ।
महाकाव्य का आरम्भ किस प्रकार करना चाहिए इस सम्बन्ध में भामह और भोजदेव ने कुछ भी प्रकाश नहीं डाला है । दण्डी का मन्तव्य है - महाकाव्य में आशीवचन, नमस्कार, वस्तुनिर्देशन आदि होना चाहिए । वाग्भट, हेमचन्द्र और विश्वनाथ इसके साथ ही खल-निन्दा और सज्जन प्रशंसा भी आवश्यक मानते हैं । महाकाव्य के उपसंहार के सम्बन्ध में अन्य सभी आचार्य मौन रहे हैं किन्तु रुद्रट और हेमचन्द्र ने लिखा है कि कवि को अपना उद्देश्य प्रकट करना चाहिए, अपने आराध्य देव का भी स्मरण करना चाहिए तथा मंगलप्रद शब्दों का प्रयोग होना चाहिए । रुद्रट का मानना है 'अन्त में नायक का अभ्युदय दिखाना चाहिए ।'
सर्ग समाप्ति के सम्बन्ध में विश्वनाथ का कहना है कि अन्त में अगले सर्ग की सूचना देनी चाहिए । वाग्भट का मानना है - प्रत्येक सर्ग के अन्तिम पद में कवि द्वारा अभिप्रेत शब्द, 'श्री', 'लक्ष्मी' आदि का प्रयोग होना चाहिए। नामकरण के सम्बन्ध में विश्वनाथ का मानना है कि कथावस्तु या चरित्रनायक के नाम पर होना चाहिए । दण्डी, भोज, वाग्भट और हेमचन्द्र के अनुसार नायक चतुर और उदात्त होना चाहिए । भामह की दृष्टि से नायक कुलीन, वीर और विद्वान हो । विश्वनाथ की दृष्टि से नायक धीरोदात्त गुणों से युक्त, उच्च कुल में उत्पन्न क्षत्रिय होना चाहिए। रुद्र का मन्तव्य है कि महाकाव्य में नायक के समान प्रतिनायक भी आवश्यक है जो नायक की कोधाग्नि को भड़का सके । प्रतिनायक के अतिरिक्त भामह, दण्डी, रुद्रट, वाग्भट, हेमचन्द्र और विश्वनाथ का मानना है कि मन्त्री, दूत, सैनिक, कुमार, कुमारपत्नी, राजकन्या आदि भी आवश्यक हैं। महाकाव्य में नवों रसों को आवश्यक माना है । विश्वनाथ का मानना है कि शृंगार, वीर और शान्त में से कोई एक रस प्रमुख होना चाहिए, अन्य गौण | सभी आचार्यों ने रस के साथ अलंकार भी
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