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________________ भारतीय साहित्य में काव्य-मीमांसा गीर्वाण गिरा के यशस्वी कवि और सफल समालोचक मंखक ने समालोचक के सम्बन्ध में चिन्तन करते हुए लिखा है-किसी भी कवि के काव्य के मर्म को समझने की योग्यता समालोचक में होती है । सफल साहित्यकार ही कवि के कमनीय सद्गुणों की सौरभ दिदिगन्त में फैला सकता है। जैसे एक तैलबिन्दु बिना जल के विस्तार नहीं पाता वैसे ही समालोचक के अभाव में कवि के काव्य का रहस्य जनता समझ नहीं पाती । समालोचक कवि के काव्य की कसौटी करता है। वह सहृदयी होता है । उसका मानस उदात्त और हृदय विराट् होता है। _आचार्य राजशेखर ने "काव्य मीमांसा" में, आचार्य रुच्चक ने "साहित्य मीमांसा" में, पण्डित विश्वनाथ ने “साहित्य दर्पण" में काव्य के समस्त अंगों पर चिन्तन-मनन किया है। काव्य एक कला है । उसमें उदात्त भावानुभूति और रसानुभूति होती है । वह बुद्धि और तर्कप्रधान नहीं, अपितु अनुभूतिप्रधान होता है । उसमें कवि के अन्तःकरण का अनन्त आनन्द अठखेलियां करता रहता है । एतदर्थ ही महाकवि भवभूति के हत्तन्त्री के सुकुमार तार झनझनाये हैं कि मैं उस विमल वाणी को वन्दना करता है जिसमें आत्मा की दिव्य और भव्य कला अमृत रूप में विद्यमान है । कवीन्द्र रवीन्द्र ने भी कहा है-काव्य में कलाकार अपने को अभिव्यक्त करता है। समवायांग, नायाधम्मकहा, राजप्रश्नीय, औपपातिक, जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति, कल्पसूत्र और उनकी वृत्तियों में कला के सम्बन्ध में गहराई से विश्लेषण किया गया है। पुरुषों के लिए बहत्तर कलाएं और महिलाओं के लिए चौंसठ कलाओं का विधान है । उन कलाओं में 'काव्य कला' भी एक कला है । 'ललित विस्तर' ग्रन्थ में काव्य करण विधि को कला में परिगणित किया है। भर्तृहरि ने तो काव्य कला रहित व्यक्ति को पशु की संज्ञा प्रदान की है। कलाओं में काव्यकला श्रेष्ठ 1 साहित्य संगीत कला विहीनः साक्षात् पशुः पुच्छविषाणहीनः ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003180
Book TitleChintan ke Vividh Aayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1982
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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