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________________ ५ जैन मुनियों का साहित्यिक योगदान भारतीय साहित्यरूपी सुमन-वाटिका को सजाने, संवारने का जितना काय जैन मनीषियों ने किया है, संभव है, उतना अन्य किसी सम्प्रदाय विशेष के विज्ञों ने नहीं किया। उन्होंने ज्ञान विज्ञान, धर्म और दर्शन, साहित्य और कला के क्षेत्र में जो रंग-बिरंगे चटकीले फूल खिलाये हैं, वे अपने असीम सौन्दर्य और सौरभ से जन जन के मन को आकर्षित करते रहे हैं । जैन साहित्य जितना प्रचुर है, उतना ही प्राचीन भी । जितना परिमार्जित है उतना ही विषय-वैविध्यपूर्ण भी, और जितना प्रौढ़ है उतना ही विविध-शैली सम्पन्न भी । इसमें तनिक मात्र भी संशय नहीं कि जब कभी भी निष्पक्ष दृष्टि से सम्पूर्ण भारतीय साहित्य का इतिहास लिखा जाएगा, उसका मूल आधार जैन साहित्य ही होगा । आचार्य रामचन्द्र शुक्ल जैसे आलोचक साधन सामग्री के अभाव में यदि प्रस्तुत-साहित्य को 'धार्मिक नोट्स' मात्र कहकर उपेक्षित करते हैं तो वह साहित्य की कमी नहीं, पर अन्वेषण की ही कमी कही जाएगी, किन्तु वर्तमान अन्वेषण के तथ्यों के आधार से यह मानना ही पड़ेगा कि भारतीय चिन्तन के क्षेत्र में जैन साहित्य का स्थान विशिष्ट है, जितना गौरव शुद्ध साहित्य का है उतना ही महत्व धर्म सम्प्रदाय के पास सुरक्षित चरित्र-साहित्य राशि का भी है। जैन साहित्यकार अध्यात्मिक परम्परा के सजक रहे हैं। आत्मलक्षी संस्कृति में गहरी आस्था रखने के बावजूद भी वे देश, काल एवं तज्जन्य परिस्थितियों के प्रति अनपेक्ष नहीं रहे हैं, उनकी ऐतिहासिक दृष्टि हमेशा खुली रही है। उनका अध्यात्मवाद वैयक्तिक होकर के भी जन जन के कल्याण की मंगलमय भावना से ओत-प्रोत रहा है । यही कारण है कि उनके द्वारा सम्प्रदाय मूलक साहित्य का निर्माण करने पर भी उसमें सांस्कृतिक, धार्मिक, ऐतिहासिक, पौराणिक तथ्य इतने अधिक हैं कि वैज्ञानिक पद्धति से उनका सर्वेक्षण किया जाए तो भारतीय इतिहास के कई तिमिराच्छन्न पक्ष आलोकित हो उठेंगे। जैन लेखकों ने मौलिक साहित्य के निर्माण के साथ ही विभिन्न ग्रन्थों पर सारगर्भित एवं पांडित्यपूर्ण टीकाएँ लिखकर साहित्य की अविस्मरणीय सेवा व Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003180
Book TitleChintan ke Vividh Aayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1982
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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