SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 137
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४ जैन शासन प्रभाविका अमर साधिकाएँ भगवान महावीर ने केवलज्ञान होने के पश्चात् चतुविध तीर्थ की स्थापना की । साधुओं में गणधर गौतम प्रमुख थे तो साध्वियों में चन्दनबाला मुख्य थीं । किन्तु उनके पश्चात् कोन प्रमुख साध्वियां हुईं, इस सम्बन्ध में इतिहास मौन है। यों आर्या चन्दनबाला के पश्चात् आर्या सुव्रता, आर्या धर्मी, आर्य जम्बू की पद्मावती, कमलभाल, विजयश्री, जयश्री, कमलावती, सुसेणा, वीरमती, अजयसेना इन आठ सासुओं के प्रव्रज्या ग्रहण करने का उल्लेख है और जम्बू की समुद्रश्री, पद्मश्री, पद्मसेना, कनकसेना, नभसेना, कनकश्री, रूपश्री, जयश्री, इन आठ पत्नियों के भी आती दीक्षा लेने का वर्णन है । वीर निर्वाण सं० २० में अवन्ती के राजा पालक ने अपने ज्येष्ठ पुत्र अवन्तीवर्धन को राज्य तथा लघु पुत्र राष्ट्रवर्धन को युवराज पद पर आसीन कर स्वयं ने आर्य सुधर्मा के पास प्रव्रज्या ग्रहण की। राष्ट्रवर्धन की पत्नी का नाम धारिणी था । धारिणी के दिव्य रूप पर अवन्तीवर्धन मुग्ध हो गया । अतः धारिणी अर्धरात्रि में ही पुत्र और पति को छोड़कर अपने शील की रक्षा हेतु महल का परित्याग कर चल दी और कौशांबी की यानशाला में ठहरी हुई साध्वियों के पास पहुँची । उसे संसार से विरक्ति हो चुकी थी । वह सगर्भा थी । किन्तु उसने यह रहस्य साध्वियों को न बताकर साध्वी बनी। कुछ समय के पश्चात् गर्भसूचक स्पष्ट चिन्हों को देखकर साध्वी प्रमुखा ने पूछा तब उसने सही स्थिति बतायी। गर्भकाल पूर्ण होने पर पुत्र को जन्म दिया और रात्रि के गहन अंधकार में नवजात शिशु को उसके पिता के आभूषणों के साथ कोशांबी नरेश के राजप्रासाद में रख दिया । राजा ने उस शिशु को ले लिया और उसका नाम मणिप्रभ रखा और पुन: धारिणी प्रायश्चित्त ले आत्मशुद्धि के पथ पर बढ़ गयी । अवन्तीवर्धन को भी जब धारिणी न मिली तो अपने भाई की हत्या से उसे भी विरक्ति हुई । और धारिणी के पुत्र अवन्तीसेन को राज्य दे उसने भी प्रव्रज्या ग्रहण की। जब मणिप्रभ और भवन्तीसेन ये दोनों भाई युद्ध के मैदान में पहुँचे तब साध्वी धारिणी ने दोनों भाइयों को सत्य तथ्य बता - कर युद्ध का निवारण किया । वीरनिर्वाण की दूसरी-तीसरी सदी में महामन्त्री शकडाल की पुत्रियाँ और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003180
Book TitleChintan ke Vividh Aayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1982
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy