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१८ | चिन्तन के विविध आयाम [खण्ड २]
भी प्राचीन ग्रन्थ के प्रमाण प्रस्तुत नहीं किये हैं अतः उनकी बात केवल कल्पना पर ही आधृत है । आज के युग में ऐसी बातें प्रामाणिक नहीं मानी जा सकती हैं ।।
__अब रहा प्रश्न समवायांग का । समवायांग के अनुसार श्रीकृष्ण तेरहवें निष्कषाय नामक तीर्थकर होंगे। इस बात को मानने पर भगवान् अरिष्टनेमि से लेकर निष्कषाय नामक तीर्थंकर का अन्तरकाल ४७ सागर का है और बारहवें अमम नामक तीर्थंकर का तीर्थकाल ३० सागर का है, इस प्रकार ४७ सागर का अन्तर होता है, इसके अनुसार श्रीकृष्ण के पांच भव से भी अधिक भव मानने होंगे।
कुछ आगमप्रेमी चिन्तकों का यह कथन है कि अन्तकृत्दशांग में बारहवें अमम नामक तीर्थंकर का उल्लेख है, वह पूर्वानुपूर्वी की अपेक्षा से है। जैसे १-२-३-४ इस प्रकार परिगणना करने से अमम बारहवें तीर्थकर होते हैं और समवायाङ्ग में जो वर्णन है वह पश्चानुपूर्वी की दृष्टि से है जैसे २४, २३, २२; २१ इस प्रकार परिगणना करने से अमम तेरहवें तीर्थंकर होंगे । यह गणना के प्रकार का ही अन्तर है किन्तु दोनों शास्त्रों के कथन में विरोध नहीं है । परिगणना तो पश्चानुपूर्वी की दृष्टि से ही करनी चाहिए और अन्तर पूर्वानुपूर्वी की अपेक्षा से है।
उपर्युक्त कथन जो समन्वय की दृष्टि से कहा जाता है वह भी ठीक नहीं बैठता है क्योंकि समवायांग में वासूदेव श्रीकृष्ण का जीव जो तीर्थकर होगा उसका नाम अमम न होकर तेरहवां तीर्थंकर निष्कषाय दिया है, जो पूर्वानुपूर्वी की दृष्टि से तेरहवें आते हैं और पश्चानुपूर्वी की दृष्टि से बारहवें आते हैं।
"भगवान अरिष्टनेमि और कर्मयोगी श्रीकृष्ण : एक अनुशीलन" ग्रन्थ के परिशिष्ट विभाग में मेरा विचार प्रस्तुत प्रश्न पर विचारचर्चा करने का था, पर मैं किसी निश्चित निर्णय पर न पहुँच सका एतदर्थ मैंने इस प्रश्न को छूआ नहीं। मेरी उक्त चर्चा का सार यही है कि गीतार्थ इस प्रश्न को सुलझाने के लिए प्रमाण पुरस्सर अपने मौलिक विचार प्रस्तुत करें।
1 स्थानकवासी जैन अहमदाबाद-पारस मुनिजी।
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