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व्यवहार सूत्र : एक समीक्षात्मक अध्ययन ८७ रांग सूत्र को पढ़ने के अधिकारी नहीं। कम से कम तीन वर्ष की दीक्षा पर्यायवाले श्रमण को आचारांग पढ़ाना कल्पता है । चार वर्ष की दीक्षा पर्यायवाले को सूत्रकृतांग, पाँच वर्ष की दीक्षा पर्यायवाले को दशाश्रुतस्कन्ध, बृहत कल्प और व्यवहार, आठ वर्ष की दीक्षा वाले को स्थानांग, समवायांग, दस वर्ष की दीक्षावाले को व्याख्याप्रज्ञप्ति, ग्यारह वर्ष वाले को लघु विमान प्रविभक्ति, महाविमान-प्रविभक्ति, अंगचूलिका बंगचूलिका, विवाहचूलिका, बारह वर्ष की दीक्षावाले को अरुणोपपातिक, गरुलोपपातिक, धरणोपपातिक, वैश्रमणोपपातिक, वैलंधरोपपातिक, तेरह वर्ष की दीक्षावाले को उपस्थानश्रुत, समुपस्थानश्रुत, देवेन्द्रोपपात, नागपरयापनिका, चौदह वर्ष की दीक्षावाले को स्वप्नभावना, पन्द्रह वर्ष की दीक्षावाले को चारण भावना, सोलह वर्ष की दीक्षा वाले को वेदनी शतक, सत्रह वर्ष की दीक्षावाले को आशीविषभावना, अठारह वर्ष की दीक्षावाले को दृष्टिविषभावना, उन्नीस वर्ष की दीक्षावाले को दृष्टिवाद और बीस वर्ष की दीक्षावाले को सभी प्रकार के शास्त्र पढ़ना कल्पता है ।
वैयावृत्य के दस प्रकार बताये हैं- (१) आचार्य (२) उपाध्याय (३) स्थविर (४) तपस्वी (५) शैक्ष-छात्र (६) ग्लान-रुग्ण (७) सार्मिक (5) कुल (६) गण और (१०) संघ । इनकी सेवा करने से कर्मों की महान निर्जरा होती है ।
इस प्रकार प्रस्तुत आगम में अनेक विषयों पर गहराई से प्रकाश डाला गया है।
व्यवहार व्याख्या-सहित मैं पूर्व ही लिख चुका है कि व्यवहार श्रमण-जीवन की साधना का एक जीवन्त भाष्य है । आगम में जिन बातों पर चिन्तन किया गया है उन्हीं पर सर्वप्रथम प्राकृत भाषा में जो पद्यबद्ध टीकाएँ लिखी गयी हैं वे नियुक्तियाँ है । नियुक्तियों में मूल ग्रन्थ के प्रत्येक पद पर व्याख्या न कर पारिभाषिक शब्दों को व्याख्या की गयी है । निर्यक्तियों की व्याख्या निक्षेप पद्धति पर अवलम्बित है । अनेक सम्भावित अर्थ को बताने के पश्चात् अप्रस्तुत अर्थ को छोड़कर प्रस्तुत पद को ग्रहण किया जाता है । आचार्य भद्रबाहु ने कहा-'सूत्र अर्थ का निश्चित सम्बन्ध बताने वाली व्याख्या नियुक्ति है ।
व्यवहारनियुक्ति में भी उत्सर्ग और अपवाद का विवेचन है। इस नियुक्ति पर भाष्य भी है जो अधिक विस्तृत है । नियुक्ति और भाष्य में यह अन्तर है कि नियुक्तियों की व्याख्या शैली बहुत ही गूढ़ और संक्षिप्त है। नियुक्तियों के गम्भीर रहस्यों को प्रकट करने के लिए विस्तार से नियुक्तियों के सदृश ही प्राकृत भाषा में
1 (क) सूत्रार्थयोः परस्परं निर्योजनं सम्बन्धन नियुक्तिः ॥
-आवश्यकनियुक्ति, गा० ८३ (ख) निश्चयेन अर्थप्रतिपादिका युक्ति नियुक्तिः ।।
आचारांग नि० १/२/१
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