________________
पारिभाषिक शब्द-कोश
परिशिष्ट ४
अंग-तीर्थंकर द्वारा उपदिष्ट और गणधर द्वारा ग्रथित श्रुत । अकल्पनीय-सदोष, अग्राह्य अकेवली-छद्मस्थ, केवलज्ञान के पूर्व की अवस्था ।
अघाती कर्म-आत्मा के ज्ञान आदि स्वाभाविक गुणों का घात न करने वाले कर्म । वे चार हैं—वेदनीय, आयुष्य नाम और गोत्र ।
अचित्त-निर्जीव पदार्थ अचेलक-अल्पवस्त्र या वस्त्ररहित
अणुव्रत-हिंसा, असत्य, स्तेय, अब्रह्मचर्य और परिग्रह का एकदेशीय त्याग ।
अट्ठम तप-तीन दिन का उपवास ।
अतिचार-व्रत भंग के लिए सामग्री एकत्रित करना या एक देश से व्रत का खण्डन करना।
अतिशय-असाधारण विशेषताओं से भी अत्यधिक विशिष्टता। अनगार--- (अपवाद रहित ग्रहण की हुई व्रतर्या) । गृहरहित साधु अध्यवसाय-विचार।
अनशन-यावज्जीवन या परिमित काल के लिए तीन या चार प्रकार के आहार का त्याग करना ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org