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भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण
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त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र आदि के अनुसार जरासंध के युद्ध के समय शिशुपाल का वध हुआ है, रुक्मिणी के विवाह के समय नहीं । महाभारत के अनुसार राजसूय यज्ञ करने वाले पाण्डवों ने प्रथम श्रीकृष्ण की अर्चना की । श्रीकृष्ण की अर्चना को देखकर शिशुपाल अत्यन्त रुष्ट हुआ, अनर्गल प्रलाप करने लगा, शिशुपाल की उद्दण्डता को देखकर भीम को बहुत ही क्रोध आया। उसके नेत्र लाल हो गये । वह शिशुपाल को मारने दौड़ा, किन्तु भीष्मपितामह ने उसे रोक दिया । शिशुपाल कहने लगा कि आप इसे छोड़ दें, मैं इसे अभी समाप्त कर दूंगा । तब भीष्मपितामह ने शिशुपाल की जन्म कहानी सुनाते हुए कहा- जब यह जन्मा था, तब गधे की तरह चिल्लाने लगा | माता - पिता डर गये । उसी समय आकाशवाणी हुई कि यह तुम्हारा कुछ भी नुकसान नहीं करेगा, इसकी मृत्यु उससे होगी जिसकी गोद में जाने से इस बालक के दो हाथ और एक आंख गायब हो जायेगी । यह सूचना सर्वत्र प्रसारित हो गई । एक दिन श्रीकृष्ण अपनी फूफी से, जो शिशुपाल की माता है, मिलने गये । शिशुपाल को ज्योंही श्रीकृष्ण की गोद में बिठाया त्योंही इसके दो हाथ और एक आंख गायब हो गई। माता ने श्रीकृष्ण से प्रार्थना की । कृष्ण ने कहा- तुम्हारा पुत्र मार डालने योग्य अपराध करेगा तो भी मैं सौ अपराधों तक क्षमा करूंगा । १४ इसीलिए यह तुम्हें युद्ध के लिए ललकार रहा है । फिर शिशुपाल ने कृष्ण को ललकारा। जब उसके सौ अपराध पूरे हो गये तब श्रीकृष्ण ने क्रोधकर चक्र को छोड़ा, जिससे शिशुपाल का सिर कट कर पृथ्वी पर गिर पड़ा। इस प्रकार श्रीकृष्ण ने शिशुपाल का वध किया । १५
१३. त्रिषष्टि० ८|७|४००-४०४
१४. अपराधशतं क्षाम्यं मया ह्यस्य पितृष्वसः । पुत्रस्य ते वधार्हस्य मा त्व शोके मनः कृथाः ॥
- महाभारत, सभापर्व, अ० ४३ श्लोक २४
१५. महाभारत, सभापर्व, अ० ४५ श्लोक २४-२६
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