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________________ जरासंध का युद्ध २५७ शकेन्द्र ने मातली नामक सारथी के साथ अपना रथ उनके लिए भेजा। दोनों ओर से भयंकर युद्ध प्रारम्भ हुआ। दोनों ओर के सैनिक अपनी वीरता दिखलाने लगे। बाणों की वर्षा होने लगी। जरासंध के पराक्रमी योद्धाओं ने जब वीरता दिखलायी तो यादव भी पीछे न रहे। उन्होंने भी जरासंध की सेना को तितर-बितर कर दिया। जब जरासंध की सेना भागने लगी तब स्वयं जरासंध युद्ध के मैदान में आया, और उसने समूद्रविजय जी के कई पूत्रों को मार दिया। उस समय उसका रूप साक्षात् काल के समान था। यादव सेना इधर उधर भागने लगी। तब बलराम ने जरासंध के अट्ठाइस पूत्रों को मार दिया। यह देख जरासंध ने बलराम पर गदा का प्रहार किया। जिससे रक्त का वमन करते हुए बलराम भूमि पर गिर पड़े। उस समय यादव सेना में हाहाकार मच गया। पुनः जरासंध बलराम पर प्रहार करने को आ रहा था कि वीर अर्जुन ने जरासंध को बीच में ही रोक लिया। इस बीच श्री कृष्ण ने जरासंध के अन्य उनहत्तर (६६) पुत्रों को भी मार डाला। अपने पुत्रों को दनादन मारते हुए देखकर जरासंध कृष्ण पर लपका। उस समय चारों ओर यह आवाज फैल गई कि 'कृष्ण मर गये हैं। यह सुनते ही मातली सारथी ने अरिष्टनेमि से नम्र निवेदन किया-प्रभू ! आपके सामने जरासंध की क्या हिम्मत है, स्वामी ! यदि आपने इस समय जरा भी उपेक्षा की तो यह यादव कुल नष्ट हो जाएगा । यद्यपि आप सावध कर्म से विमुख हैं, तथापि लीला बताये बिना इस समय गति नहीं है। यह सुनते ही अरिष्टनेमि ने कोप किये बिना ही पौरंदर नामक शंख बजाया। शंखनाद को सुनते ही यादव सेना स्थिर हो गई१४ और शत्र सेना क्षोभ को प्राप्त हुई। फिर अरिष्टनेमि के संकेत से मातली सारथी ने उस रथ को युद्ध के मैदान में घुमाया। अरिष्टनेमि ने १३. भ्रातृस्नेहाद्य युत्सु च शक्रो विज्ञाय नेमिनम् । प्रेषीद्रथं मातलिना जैत्रशस्त्रांचितं निजम् ।। -त्रिषष्टि ८ । ७ २६०-६१ १४. त्रिषष्टि ८ । ७ ४२०-४२६ १७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003179
Book TitleBhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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