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जरासंध का युद्ध
जरासंध का युद्ध के लिए प्रस्थान :
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आचार्य हेमचन्द्र रचित त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र, ' एवं आचार्य मल्लधारी हेमचन्द्र रचित भव-भावना व यति रत्नसुन्दर रचित अमम स्वामी चरित्र के अनुसार कितने ही व्यापारी व्यापारार्थ यवन द्वीप से समुद्र के रास्ते द्वारिका नगरी में आये । द्वारिका के वैभव को देखकर वे चकित हो गये । रत्नकम्बल के अतिरिक्त वे जितनी भी वस्तुएं लाये थे, सभी उन्होंने द्वारिका में बेच दी । रत्न - कम्बलों को लेकर वे राजगृह नगर पहुँचे । वे रत्नकम्बल उन्होंने जीवयशा को बताई । जीवयशा को कम्बल पसन्द आए और उसने उन्हें आधी कीमत में लेना चाहा । व्यापारियों ने मुँह मचकाते हुए कहा -- यदि हमें इतने कम मूल्य में देने होते तो द्वारिका में ही क्यों न बेच देते, जहाँ पर इससे दुगुनी कीमत आ रही थी ।
जीवयशा ने जिज्ञासा प्रस्तुत की कि द्वारिका नगरी कहाँ है ? उसके राजा कौन हैं ?
१. त्रिषष्टि ८।७।१३४-१४८ ।
२. भव-भावना गा. २६५६ - २६६५, पृ० १७६-१७७ ।
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