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भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण
वे सभी श्रीकृष्ण के पास पहुंची, और कहा कि उस दिन की शर्त के अनुसार रुक्मिणी के बाल दिलाओ।
श्रीकृष्ण ने मजाक करते हुए कहा-तुम उसे मुण्डित बनाना चाहती थी पर स्वयं ही मुण्डित क्यों हो गई ?
सत्यभामा के अत्याग्रह पर बलराम को सत्यभामा के साथ रुक्मिणी के बाल लेने के लिए श्रीकृष्ण ने भेजा, पर आगे देखा तो रुक्मिणी के साथ श्रीकृष्ण स्वयं बैठे हुए हैं। वे लज्जा से पुनः लौट गये । पीछे लौटकर आने पर उन्हें श्रीकृष्ण से ज्ञात हुआ कि वह कोई मायावी था।
नारद ने रुक्मिणी को बताया कि यह मुनि नहीं, तेरा ही पुत्र प्रद्य म्न है । रुक्मिणी पुत्र को पाकर बहुत ही प्रसन्न हुई । नारद ने कहा-इसने भानुकुवंर का विवाह जिस कन्या के साथ होने वाला है उसका अपहरण कर लिया है। इसी ने अन्य अनेक चमत्कार सत्यभामा आदि को दिखाये हैं।
प्रद्युम्न ने माता से कहा- जब तक मैं अपने पिता श्रीकृष्ण को चमत्कार न दिखाऊ तब तक मुझे प्रकट नहीं होना है।
प्रद्य म्न ने शीघ्र ही अपनी माता रुक्मिणी को रथ में बिठाकर बहुत ही तीव्रस्वर में श्रीकृष्ण को चुनौती दी- मैं रुक्मिणी को हरण कर ले जारहा हूँ, यदि तुम में शक्ति हो तो लेने के लिए आओ।
श्रीकृष्ण ने जब यह सुना तो वे पीछे दौड़े। युद्ध हुआ। प्रद्य म्न ने श्रीकृष्ण को शस्त्ररहित कर दिया । श्रीकृष्ण की सेना भी प्रद्य म्न के सामने टिक न सकी। उसी समय श्रीकृष्ण का दाक्षिणात्य नेत्रस्फुरित हुआ और नारद ने आकर कहा -- कृष्ण ! जिसके साथ तुम यूद्ध कर रहे हो वह देव या विद्याधर नहीं, अपितु तुम्हारा ही पूत्र प्रद्य म्न है। इसने तुम्हें बता दिया कि पिता से पुत्र सवाया है।
पिता-पुत्र का वह अपूर्व प्रेम-मिलन सभी के लिए आह्लादकर था।
दुर्योधन ने राजसभा में आकर श्रीकृष्ण से निवेदन कियाहे स्वामी ! मेरी और तुम्हारी दोनों की लाज जाती है। लग्न के
७२. त्रिषष्टि० ८।६।४८६-४७२
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