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प्रस्तुत कृति : एक मूल्यांकन
भारतीय संस्कृति के दो महान् ज्योतिर्धर भगवान अरिष्टनेमि और कर्मयोगी श्रीकृष्ण के गौरवपूर्ण जीवन का यह सरल, स्पष्ट एवं तुलनात्मक रेखाँकन भारतीय साहित्य में अपनी शैली की एक प्रथम कृति है.
स्वतंत्र रूप से भगवान अरिष्टनेमि के सम्बन्ध में भी बहुत कुछ लिखा गया है और कर्मयोगी श्रीकृष्ण के सम्बन्ध में तो सहस्रशः ग्रन्थों की रचना हो चुकी है, किन्तु सम्पूर्ण भारतीय संस्कृति में दोनों महापुरुषों के तुलनात्मक रूप को उभारकर, निखारकर प्रामाणिक एवं अनुशीलनात्मक तटस्थ दृष्टि से लिखने का यह शुभ प्रयत्न एक ऐतिहासिक उपक्रम है.
लेखक की शैली में पद-पद पर गम्भीर अध्ययन, तुलनात्मक दृष्टि एवं सर्व धर्म सद्भाव की भव्य झलक दिखाई पड़ती है.
विद्वानों एवं सर्व सामान्य में भी अरिष्टनेमि एवं श्रीकृष्ण के सम्बन्ध में अनेक भ्रांत एवं अज्ञान - मूलक धारणायें बनी हुई हैं। एक ही युग, एवं एक ही महान् संस्कृति के प्रतिनिधि इन दोनों महापुरुषों को अब तक के सांप्रदायिक मानस ने दो भिन्न-भिन्न प्रतिबिम्बों में, दूर-दूर खड़ा करने का प्रयत्न किया, किन्तु विद्वान् लेखक ने अपने अध्ययन के बल पर उन दोनों महान् व्यक्तित्वों की कल्पित दूरी और विभाजक रेखाओं को तोड़कर एक भव्य, दिव्य सांस्कृतिक एवं समन्वय प्रधान रूप को प्रस्तुत कर भारतीय वाङमय को एक सुन्दर उपहार प्रस्तुत किया है।
- श्रीचन्द्र सुराना 'सरस' संपादक : श्री अमर भारती
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