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भारतीय साहित्य में श्रीकृष्ण
जैन कृष्ण साहित्य
जैन साहित्य में श्रीकृष्ण के सम्बन्ध में विस्तार से प्रकाश डाला गया है । द्वादशाङ्गी के अन्तिम अंग का नाम दृष्टिवाद है । उसका एक विभाग अनुयोग है । अनुयोग के दो भेद हैं- मूल प्रथमानुयोग और गंडिकानुयोग | गंडिकानुयोग में अनेक गंडिकाएं थीं, उसमें एक गंडिका का नाम वासुदेव गंडिका है ।" उस गंडिका में इस अवसर्पिणी काल के नौ वासुदेवों का विस्तार से वर्णन था । अन्तिम वासुदेव श्रीकृष्ण हैं अतः उनका भी उसमें सविस्तृत वर्णन होना चाहिए | पर खेद है कि आज वह गंडिका अनुपलब्ध है । यदि वह गंडिका उपलब्ध होती तो संभवतः श्रीकृष्ण के सम्बन्ध में अन्य अनेक अज्ञात बातें भी प्रकाश में आ सकती थीं ।
उपलब्ध जैन आगम साहित्य में श्रीकृष्ण के सम्बन्ध में बिखरी हुई सामग्री है | आगमों में यद्यपि परवर्ती साहित्य की तरह व्यव - स्थित जीवनचरित्र कहीं पर भी नहीं है तथापि जो सामग्री है वह उसे
१. ( क ) समवायाङ्ग सूत्र १४७
( ख ) नन्दी सूत्र सूत्र ५६, पृ० १५१-१५२ पूज्य हस्तीमलजी म० ।
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