________________
तीर्थंकर जीवन
१२७
'पुत्र ! तेरे जन्म की बात का पूछना ही क्या ! उस समय बहुत गीत गाये गए थे, बाजे बजाए गये थे । पूरे मोहल्ले में मिठाइयाँ बांटी गई थीं । महान् उत्सव किया गया था ।'
'माता ! मेरा मन करता है कि ऐसे गीत हमेशा सुनता रहूँ, बड़े अच्छे लगते हैं, तुम भी चलो ऊपर, और गीत - सुनने का आनन्द लो ।'
'पुत्र ! मुझे बहुत काम है, मैं नहीं आ सकतीं, तुम जाओ और आनन्द से गीत सुनो।'
थावच्चापुत्र ऊपर गया किन्तु सुमधुर स्वर-लहरियों के स्थान पर कर्णकटु आक्रन्दन सुनाई दिया । भयावना - सा कोलाहल सुनाई दिया । उसे सुनते ही उसका मन रुआँसा होने लगा । वह वहां खड़ा न रह सका । उसी समय दौड़कर वह पुनः माता के पास गया । बोला- माता ! जो गीत पहले सुहावने लग रहे थे, जिन्हें सुनने के लिए जी चाहता था, अब वे बड़े डरावने लग रहे हैं । क्या कारण है ?'
माता को वस्तु-स्थिति समझने में देर न लगी । पड़ौसी पर आयी हुई आकस्मिक विपत्ति के कारण उसकी आँखें गीली हो गईं । माता की आँखों में आँसू छलकते देखकर थावच्चापुत्र ने कहा - "माँ क्यों रो रही हो ? मैंने ऐसा क्या कहा जिससे तुम रोने लग गईं ? मैंने तो इतना ही पूछा कि पहले गीत अच्छे लग रहे थे, अब क्यों नहीं लग रहे हैं ?"
माता थावच्चापुत्र की सरलता, व अबोधता पर गद्गद् हो उठी । वह अपने प्यारे पुत्र को गले लगाकर बोली -- 'वत्स ! कुछ समय पूर्व पड़ौसी के घर में जिस पुत्र का जन्म हुआ था, जिसका उत्सव मनाया जा रहा था, वह मर गया है । इसलिए गायन रुदन में परिणत हो गया है । प्रसन्नता के स्थान पर शोक की काली घटा छा गयीं हैं ।'
'माँ ! क्या इसी तरह मैं भी एकदिन मर जाऊंगा ?"
1
'बेटा ! ऐसी बात नहीं कहा करते । जा मुँह से थूक दे तू तो मेरा आँखों का तारा, नयनों का सितारा है, तू क्यों मरेगा ?' 'अच्छा माता, मैं कभी नहीं मरूंगा ?'
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org